पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७३३

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यथेष्ट प्रतिपत्ति लाभ करेगा। मासिक पत्रों की संख्या बड़ी है। उनमें से प्रसिद्धि प्राप्त 'सरस्वती', 'माधुरी', 'सुधा', 'विशाल भारत', 'वीणा','चाँद', 'कल्याण . 'हंस', 'विज्ञान'. आदि हैं जिनका सम्पादन योग्यता पूर्वक होता है। ये हिन्दी संसार में प्रतिष्ठा को दृष्टि से भी देखे जाते हैं। इनमें सुन्दर में सुन्दर लेख पढ़ने के लिये मिलते हैं और उनमें ऐसो सरस कवितायें भी प्रकाशित होती हैं. जिनमें कवि कर्म पाया जाता है। जैसी मासिक पत्रिकाओं के प्रकाशित होने से साहित्य वास्तव में साहित्यिकता प्राप्त करता है. ये पत्रिकायें वैसी ही हैं। इनके अतिरिक्त स्त्रियों के लिये 'आर्य महिला'.'सहेली','त्रिवेणी' नाम की पत्रिकायें और बच्चों के लिये बालसखा', विलौना', 'बानर' और 'बालक'नामक पत्र मी सुन्दरता से निकल रहे हैं एवं आत भी हैं। हाल में प्रेमा' नामक एक अच्छी पत्रिका भी निकली है। त्रैमासिक पत्रिकाओं में नागरी प्रचारिणी सभा की 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' और हिन्दुस्तानी एकेडेमी का हिन्दुस्तानी' उल्लेखयोग्य हैं। नागरोप्रचारिणी पत्रिका चिरकाल से निकल रही है और अपने गम्भीरतामय लेखों के लिये प्रसिद्ध है। इसके पुरातत्व सम्बन्धी लेख बड़े मार्के के और उपयोगी होते हैं। इस पत्रिका का सम्पादन बड़ी योग्यता से होता है। हिन्दुस्तानी' के लेख भी चुने और ऊँचे दर्जे के होते हैं। सम्पादन की दृष्टि से भी वह अभिनन्दनीय है। यह अभी थोड़े दिनों से निकल रहा है । अन्त में मुझको यह कहते कप्ट होता है कि उर्दू भाषा के लिये निज़ाम हैदराबाद जैसा कल्पद्रुम अब तक कोई गजा महाराजा हिन्दी को नहीं मिला। किन्तु मुझको इसका गौरव और गर्व है कि राजा महाराजाओं से भी अधिक प्रभावशाली महर्षि कल्प पूज्य पं. मदनमोहन मालवीय और महात्मा गांधी उसके लिये उत्सर्गी-कृत-जीवन हैं, जिससे उसका भविष्य अधिक उज्ज्वल है। मुझको विश्वास है कि वह दिन दूर नहीं है जब हमारे राजे महागजे भी अपना कर्त्तव्य समझेंगे और हिन्दी भाषा के विकास,परिवर्द्धन और प्रचार के सर्वोत्तम साधन सिद्ध होंगे। परमात्मा यह दिन शीघ्र लावे ।।