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जिन आर्य परिवार की भाषाओं का वर्णन अभी हुआ, कहाजाता है, उनमें दो विभाग हैं। एक का नाम है अन्तरंगभाषा और दूसरी का बहिरंग। इनभाषाओं की मध्य की भाषा को मध्यवर्ती भाषा कहते हैं. और वह है अर्धमागधी से प्रसूत वर्तमान काल की पूर्वी हिन्दी । अन्तरंग भाषा में निम्नलिखित भाषाओं की गणना है १ पश्चिमी हिन्दी २ पूर्वी पहाड़ी ३ मध्यपहाड़ी ४ पंजाबी ५ राजस्थानी ६ गुजराती और ७ पश्चिमीय पहाड़ी।
१ मराठी । २ उड़िया । ३ विहारी । ४ बंगाली . ५ आसामी । ६ सिंधी और ७ पश्चिमी पंजाबी।
हौर्नेलका विचार है कि आर्यों के भारत में दो दल आये एक पहले आया और दूसरा बाद को। जो दल पहले आया, वह मध्य देश में आकर वहीं बस गया । इस दल के पश्चात् दूसरा प्रबलदल आया, और उसने अपने सजातियों को मध्य देश से निकाल बाहर किया। निकाले जाने पर पहले दल वाले मध्यदेश के ही चारों ओर. अर्थात उसके पूर्व, पश्चिम उत्तर और दक्षिण ओर फैल गये, और वहीं बस गये। नवागत आयमध्य देश में बम जाने के कारण 'अन्तरंग', और प्रथमागत आर्य मध्यदेश के बाहर निवास करने के कारण 'विहिरंग' कहलाये। 'अन्तरंग' आर्यों में ही वैदिक संस्कृति और ब्राह्मण कालीन विचारों का विकास हुआ। भारत में दो भिन्न विरोधी दल आने के सिद्धान्त को डाक्टर जी० ए० ग्रियर्सन ने भी स्वीकार किया है। वे कहते हैं 'वहिरंग' आर्यों का 'डार्डिक' भाषाभाषियों से घनिष्ट सम्बन्ध था, और ऐसा ज्ञात होता है कि वे उन्हों की एक शाखा थे। मध्यदेश से चले जाने पर वहिरंग आर्य पंजाब, सिंध, गुजरात, राजपुताना, महाराष्ट्र प्रदेश,