पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१०९

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का स्पष्टरूपेण विवरण कर दिया गया है। हाँ, इतना कह देना आवश्यक है कि इस तरह से प्रत्येक भाव को पृथक्-पृथक् समझने के लिये उनके भेदक धर्म और कार्य-कारण अन्यत्र नहीं समझाए गए हैं।

 

इति शुभम्।

 
वैशाख शुक्ला ८ शुक्रवार
संवत् १९८५
पुरुषोत्तमशर्मा चतुर्वेदी
जयपुर
ता॰ २७ अप्रैल सन् १९२८