पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१६०

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उपदेश आदि, जो कि विशेप चमत्कारी नहीं हैं, उनसे भी "धीरे धीरे उठाना" सिद्ध हो सकता है, अत: उसके सिद्ध करने के लिये प्रेम ही की विशेष आवश्यकता हो, सो वात नहीं है। पर सहृदयों के हृदय मे जो पहले ही से यह बात उठ खड़ी होती है कि "यह वियोग के समय का प्रेम है। उसे ध्वनित किए विना "धीरे धीरे उठाना", खतंत्रता से, परम आनंद के आस्वाद का विषय बनने का सामर्थ्य नहीं रखता। इसी तरह "निःशेषच्युतचंदनम्........" आदि पद्यों मे भी "अधमता" आदि वाच्य, व्यंग्य (दूती-संभोग आदि) के अतिरिक्त अर्थ के द्वारा तैयार किए गए है, और व्यंग्य अर्थ को स्वयं प्रकट करते हैं, सो वहाँ भी व्यंग्य के गौण होने की शंका न करनी चाहिए।

उत्तमोत्तम और उत्तम भेदों मे क्या अंतर है?

यद्यपि इन दोनों (उत्तमोत्तम और उत्तम) भेदों मे व्यंग्य का चमत्कार प्रकट ही रहता है, छिपा हुआ नही, तथापि एक मे व्यंग्य की प्रधानता रहती है और दूसरे मे अप्रधानता, इस कारण इनमे एक दूसरे की अपेक्षा विशेषता है, जिसे सहदय पुरुष समझ सकते हैं।

चित्र-मीमांसा के उदाहरण का खंडन

अच्छा, अब एक "चित्रमीमांसा' के उदाहरण का खंडन भी सुन लीजिए; क्योंकि इसके विना पंडितराज को कल नही, पड़ती। वह उदाहरण यह है-