पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(५७)

रही थीं; अतः वे और वैसी ही अन्य वस्तुएँ उद्दीपन कारण हुईं। अब दुष्यंत का प्रेम द्दढ़ हो गया और शकुंतला के प्राप्त न होने के कारण, उसके वियोग में, उसकी आँखों से लगें अश्रु गिरने। यह अश्रुपात उस प्रेम का कार्य हुआ। और इसी तरह उस प्रेम के साथ साथ, उसका सहकारी भाव, चिंता उत्पन्न हुई। वह सोचने लगा कि मुझे उसकी प्राप्ति कैसे हो! इसी तरह शोक आदि में भी समझो। पूर्वोक्त सभी बातों को हम संसार में देखा करते हैं। अब पूर्वोक्त प्रक्रिया के अनुसार, संसार में, रति आदि के जो शकुंतला आदि आलंबन कारण होते हैं, चाँदनी आदि उद्दीपन कारण होते हैं, उनसे अश्रुपातादि कार्य उत्पन्न होते हैं और चिंता आदि उनके सहकारी भाव होते हैं, वे ही जब, जहाँ जिस रस का वर्णन हो, उसके उचित एवं ललित शब्दों की रचना के कारण मनोहर काव्य के द्वारा उपस्थित होकर सहृदय पुरुषों के हृदय में प्रविष्ट होते हैं, तब सहृदयता और एक प्रकार की भावना—अर्थात् काव्य के बार बार अनुसंधान के प्रभाव से, उनमें से "शकुंतला दुष्यंत की स्त्री है" इत्यादि भाव निकल जाते हैं, और अलौकिक बनकर—संसार की वस्तुएँ न रहकर—जो कारण हैं वे विभाव, जो कार्य है वे अनुभाव और जो सहकारी हैं वे व्यभिचारी भाव कहलाने लगते हैं। बस, इन्हीं के द्वारा पूर्वोक्त अलौकिक क्रिया के द्वारा रसों की अभिव्यक्ति होती है।

इसी बात को मम्मटाचार्य काव्यप्रकाश में कहते हैं—