पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१७८

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(६३)

यह आनंदरूप होता है) ये श्रुतियाँ और दूसरा सव सहृदयों का प्रत्यक्ष। आप सहदयों से पूछ देखिए कि इस चर्वणा में कुछ आनंद है अथवा नहीं। स्वयं अभिनवगुप्ताचार्य लिखते हैं—जो यह दूसरे (ख) पक्ष में 'चित्तवृत्ति के आनंदमय हो जाने' को रस की चर्वणा बताई गई है, वह शब्द की व्यापारव्यंजना से उत्पन्न होती है, इस कारण शब्द-प्रमाण के द्वारा ज्ञात होनेवाली है और प्रत्यक्ष सुख का आलंबन है—इसके द्वारा सुख का प्रत्यक्ष अनुभव होता है, इस कारण प्रत्यक्ष रूप है; जैसे कि "तत्त्वमसि" आदि वाक्यों से उत्पन्न होनेवाला ब्रह्मज्ञान।

(२)
भट्टनायक का मत

साहित्य शास्त्र के एक पुराने आचार्य भट्टनायक का कथन है कि—तटस्थ रहने पर—रस से कुछ संबंध न होने पर—यदि रस की प्रतीति मान ली जाय तो रस का आस्वादन नहीं हो सकता, और 'रस हमारे साथ संबंध रखता है' यह प्रतीत होना बन नहीं सकता, क्योंकि शकुंतलादिक सामाजिकों (नाटक देखनेवाले आदि) के तो विभाव हैं नही—वे उनके प्रेम आदि का तो आलंबन हो नहीं सकती; क्योंकि सामाजिकों से शकुंतला आदि का लेना देना क्या? और बिना विभाव के आलंबनरहित रस की प्रतीति हो नहीं सकती; क्योंकि जिसे हम अपना प्रेमपात्र समझना चाहते है, उससे