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उनके विषय मे उनके भतीजे हरिहर भट्ट ने, जो महाविद्वान् थे, स्वनिर्मित 'कुलप्रबंध' नामक काव्य में यों लिखा है कि—
लब्ध्वा विद्या निखिलाः पंडितराजाजगन्नाथात्।
नारायणस्तु दैवादल्पायुः स्वपुरीमगमत्॥
अर्थात् पंडितराज जगन्नाथ से सब विद्याएँ प्राप्त करके नारायण भट्ट तो, भाग्यवशात्, थोड़ी ही अवस्था में स्वर्ग को सिधार गए[१]।
इस सबसे यह पता लगता है कि पंडितराज के, संस्कृत और हिंदी दोनों भाषाओं के ज्ञाता, अनेक अच्छे अच्छे विद्वान् शिष्य थे।
किंवदंतियाँ और समय
पंडितराज के विषय में अनेक किवदंतियाँ प्रसिद्ध हैं। कुछ लोग कहते हैं कि "जगन्नाथ पंडितराज ने तैलंग देश से जयपुर आकर वहाँ एक पाठशाला स्थापित की थी और वहीं उन्होने किसी काजी को, जो दिल्ली से आया था, मुसलमानों के मजहबी ग्रंथों को बहुत शीघ्र पढ़कर विवाद में हरा दिया था। वह काजी जब दिल्ली गया, तो उसने बादशाह के
- ↑ नारायण भट्ट और हरिहर भट्ट के वंश में इस समय शुद्धाद्वैतभूषण भट्ट श्रीरमानाथ शास्त्रीजी (बंबई) तथा साहित्याचार्य भट्ट श्रीमथुरानाथ शास्त्रीजी (जयपुर) आदि अनेक 'भट्ट' विद्यमान हैं और उनकी प्राप्त की हुई जीविका को भोगते हैं।