पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१९

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सामने पंडितराज की विद्या-बुद्धि की बड़ी प्रशंसा की। बादशाह यह सब सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने इन्हें जयपुर से दिल्ली बुलाकर इनका बड़ा आदर-सत्कार किया। वहाँ ये महाशय किसी यवन-कन्या पर आसक्त हो गए और बादशाह की कृपा से इनका उसके साथ ब्याह भी हो गया। इस तरह इन्होंने अपनी यौवनावस्था बादशाह के आश्रय में ही सुखपूर्वक बिताई। जब ये बुड्ढे हुए तब काशी चले गए। पर वहाँ अप्पय दीक्षित प्रादि विद्वानों ने यह कहकर कि 'यह तो यवनी के संसर्ग से दूषित है' इनका तिरस्कार किया और इन्हें जाति से निकाल दिया। तब ये गंगातट पर गए और सबसे ऊपर की सीढ़ी पर बैठकर उसी समय बनाए हुए अपने पद्यों से (जिनका संग्रह 'गंगालहरी' नामक पुस्तक में है) लगे गंगाजी की स्तुति करने। फिर क्या था, भक्तवत्सला गंगाजी प्रसन्न हुईं और प्रत्येक श्लोक पर एक एक सीढ़ी चढ़ती गईं और बावनवे पद्य के पढ़ने पर पंडितराज के पास आ पहुँची, एवं उस यवनकन्या सहित इन महाशय को अपनी प्रेमपूर्ण गोदी में बिठाकर स्नान करवा दिया। ईर्ष्या-द्वेष से कलुषित बेचारे काशी के पंडित पंडितराज के इस प्रभाव को देखकर अत्यंत चकित हो गए और फिर कुछ न बोल सके।"

दूसरे लोगो का यह भी कहना है कि—"जब ये महाशय दिल्ली-नरेंद्र शाहजहाँ के कृपापात्र हो गए और उनकी कृपा से इन्हें अच्छी संपत्ति प्राप्त हो गई, तब, जवानी के दिन तो