पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

[१७]

थे ही, इनके विवेक का प्रकाश लुप्त हो गया और ये अंधे हो कर किसी यवनयुवती पर आसक्त हो गए। पर थोड़े समय के बाद वह मर गई। बेचारे पंडितराज उसके विरह मे बड़े घबड़ाए और दिल्ली छोड़कर काशी चले गए। पर वहाँ के पंडितों ने, जो पहले इनके आचरणों को सुन चुके थे, इनका अनादर किया और ये स्वयं भी पंडितों के तिरस्कार एवं प्रियतमा की विरहाग्नि से दुःखित हुए और कहीं चैन न पा सके। परिणाम यह हुआ कि अपनी बनाई हुई गंगालहरी को पढ़ते हुए, जब बरसात में गंगा की बाढ़ आ रही थी तब, उसमें कूद पड़े और डूबकर मर गए।[१]"

एक किवदंती यह भी है कि—"जब ये वृद्ध होकर काशी में जा रहे थे, तब एक दिन प्रभात के समय, ठंडी ठंडी हवा में, पंडितराज अपनी उस यवनयुवती को बगल मे लिए हुए, गंगातट पर, मुँह पर वस्त्र ओढ़े हुए सोए हुए थे और इनकी सफेद चोटी खटिया से नीचे लटक रही थी। इतने में अप्पय दीक्षित वहाँ स्नान करने चले आए। उन्हें एक वृद्ध मनुष्य की यह दशा देखकर दुःख हुआ और कहने लगे कि "कि-निश्शंकं शेषे, शेषे वयसि त्वमागते मृत्यौ।" अर्थात् महा-


  1. ये दोनों किंवदंतियाँ काव्यमाला में प्रकाशित रसगंगाधर की भूमिका से ली गई हैं। वहाँ यवनी की आसक्ति के अनुमापक श्लोक भी लिखे हैं, पर उन्हें अश्लील समझकर हमने छोड़ दिया है और वे सर्वत्र प्रसिद्ध भी हैं।