वाली, विकसित और सरस चितवनों से तथा सुंदर रचनावाले वचनों से, आज, मेरा कुछ भी सत्कार क्यों नहीं कर रही हो। यह आगे पड़ी हुई मृतक नायिका के प्रति नायक की उक्ति है।
यहाँ, नायिका-रूपी आलंबन, अश्रुपातादिक अनुभाव और आवेग, विषाद आदि संचारी भावों से अभिव्यक्त हुआ नायक का (नायिका-विषयक) प्रेम, इन्हीं आलंबनादिकों से अभिव्यक्त हुए, परंतु प्रस्तुत होने के कारण प्रधान, नायक के 'शोक' का, उसे बढ़ानेवाला होने के कारण, अंग है। यदि यह आग्रह किया जाय कि-यहाँ नायक के प्रेम की प्रतीति नहीं होती, किंतु पूर्वोक्त सामग्री के द्वारा उसका शोक ही प्रतीत होता है, क्योंकि वही प्रस्तुत है-उस बेचारे को प्रेम कहाँ से आवेगा, उसे तो रोना पड़ रहा है; तो, जिसका नायक आलंबन है, सामने आना आदि अनुभाव हैं, हर्षादिक संचारी भाव हैं-उस नायिका के प्रेम को ही शोक का अंग समझिए, क्योंकि नायिका का प्रेम नायक के शोक का बढ़ानेवाला होता है यह बात सब लोगों की मानी हुई है। आप कहेंगे कि जब नायिका नष्ट हो गई, तब उसका प्रेम विद्यमान वो है नहीं, फिर वहशोक का अंग कैसे हो सकता है? इसका उत्तर यह है कि अंग होने में विद्यमान होना आवश्यक नहीं है, अतः स्मरण किया हुआ प्रेम भी अंग हो सकता है।
अन्य का अंग होने पर विरुद्ध रसों का अविरोध; जैसे-