पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १६८ )


(जगदीश्वर) के मुख से उत्पन्न हुए मनुष्यों (अर्थात् ब्राह्मणों) का और मधु के सदृश मधुर वचनो (अर्थात् श्रुतियों) का विनोद प्रकट हुआ। इसका साराश केवल इतना है कि प्रातःकाल मे ब्राह्मणो ने वेद-पाठ करना आरंभ किया।

यहाँ 'प्रातःकाल में' इस एक पद का अर्घ वर्णन करने के लिये पूर्वार्ध के दो चरण बनाए गए हैं और 'ब्राह्मणो' तथा वेदो' इन एक एक पदों के लिये आगे का डेढ़ चरण। अतः यह एक पद के अर्थ मे अनेक पदो के वर्णन का उदाहरण हुआ।

अब अनेक पदो के अर्थ का वर्णन करने के लिये एक पद के वर्णन का उदाहरण सुनिए-

खण्डितानेत्रकञ्जालिमञ्जुरञ्जनपण्डिताः।
मण्डिताखिलदिक्यान्ताश्चण्डांशान्ति मानवः॥

xxxx

खण्डित वनिता नैन-नलिन रँगिवे ने पडित।
चंड-किरन के किरन करत दिग-भागन मडित॥

खांडता त्रियों के नेत्र-मलो की पंक्तियों को सुंदरतया रँगने मे चतुर सूर्यदेव की किरणे संपूर्ण दिग्भागों को भूषित करती हुई शोभित हो रही हैं।

यहाँ 'यस्याः पराजनागेहात पतिः प्रातगृहेऽञ्चति। अर्थात् जिसका पति दूसरी लो के घर से प्रातःकाल अपने घर आवे इस वाक्यार्थ के स्थान में केवल 'खंडिता'पद वर्णन किया गया है।