पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२९

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१२ वर्ष के पौत्र पर अनुग्रह किया था', केवल किंवदंतीमूलक है, और पूर्वोक्त सिद्धांतलेशसंग्रह के भूमिका-लेखक भी इसके मानने में विप्रतिपन्न हैं। अतः हमारी समझ में तो यह आता है कि 'नीलकंठविजय' के लिखते समय दीक्षितजी भी उपस्थित थे, और पौत्र की अवस्था उस समय ३० वर्ष की थी। नीलकंठ ने स्वयं भी अप्पय दीक्षित की वंदना में वर्तमान काल का प्रयोग किया है[१], और ७०-७२ वर्ष के दादा के ३० वर्ष का पौत्र होना कुछ असंभव भी नहीं। सो यह सिद्ध हो जाता है कि अप्पय दीक्षित भी शाहजहाँ के राजत्वकाल तक विद्यमान थे।

अब यह विचार कीजिए कि पंडितराज दारा के विनाश और शाहजहाँ के कारावास तक दिल्ली में थे अथवा नहीं। यह कहा जा सकता है कि दारा के अभ्युदय और यौवन तक वे वहाँ थे, जैसा कि 'जगदाभरण' के प्रणयन से सिद्ध होता है। सो यह तो उस दुर्घटना के बहुत पूर्वकाल में भी बन सकता है। कारण औरंगजेब के राज्यारोहण का वय चालीस वर्ष है, जो इतिहासप्रसिद्ध है। तब वह शाहजहाँ के राज्यारोहण के समय दस वर्ष का सिद्ध होता है। और, दारा तो उससे लगभग ६ वर्ष बड़ा होना चाहिए, क्योंकि औरंगजेब से बड़ा शुजा और उससे बड़ा दारा था। सो ई॰ सन् १६३९ तक, जो 'नीलकंठविजय' का


  1. 'श्रीमानप्पयदीक्षित स जयति श्रीकंठविद्यागुरुः' (नीलकंठविजय)।