पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२९८

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होता है, जैसे-'ककुभसुरभिः', 'विततगात्रः' और 'पललमिवाभाति' इत्यादि मे बड़े अक्षरों का। यदि वही बार बार हो, तो अधिक अनुचित प्रतीत होता है; जैसे–"वितततरस्तरुरेष भाति भूमौ'। इसी तरह भिन्न भिन्न पदों में आने पर भी अधिक अनुचित प्रतीत होता है; जैसे-'शुक करोषि कथं विजने रुचिम्' इत्यादि मे। और यदि भिन्न भिन्न पदों मे हो और बार-बार हो, तो और भी अधिक अनुचित होता है; जैसे 'पिक ककुभो मुखरीकुरु प्रकामम्'।

इसी तरह पहले जिस वर्ग का अक्षर आया है, उसके साथ हीसाथ उसी वर्ग के अन्य अक्षर का प्रयोग, यदि एक-पद मे और एक बार हो, तो कानो को कुछ अनुचित लगता है जैसे-'वितयस्ते मनोरथः' यहाँ त और थ का। पर यदि बारबार हो, तो अधिक अश्रव्य होता है, जैसे-'वितयतरं वचनं तव प्रतीमः' यहॉ 'त-थ-त' का प्रयोग। इसी तरह यदि भिन्नमिन्न पदों मे हो, तब भी अधिक अश्रव्य होता है; जैसे-'प्रथ तस्य वचः श्रुत्वा' इत्यादि मे। और यदि भिन्न भिन्न पदो मे और बार बार हो, तो और भी अधिक अश्रव्य होता है; जैसे-'अथ तथा कुरु येन सुखं लभे यहाँ 'थ-त-थ का प्रयोग। यह एक वर्ग के अक्षरो का सह-प्रयोग पहले के बाद दूसरे का और तीसरे के बाद चौथे का हो, तभी अनुचित होता है। पहले और तीसरे एवं दूसरे और तीसरे का सह-प्रयोग वो उतना अश्रव्य नहीं होता, कितु बहुत कम होता है, जिसे कि रचना