पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३१

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गंगाधर में अप्पय दीक्षित के नाम के स्थान पर, कई जगह, 'द्रविडशिरोमणिभिः' और 'द्रविडपुङ्गवै' शब्द लिखे हैं, जो कि इनके सरपंच होने की सूचना देते हैं।

जब यह बात ठीक हो गई कि अप्पय दीक्षित और भट्टोजि दीक्षित इनके समय में थे, तो पूर्वोक्त श्लोकों के अर्थ को मिथ्या मानने में कोई विशेष उपपत्ति नहीं रह जाती। अब यह बात सामने आती है कि भट्टोजि दीक्षित ने इन्हें भरी सभा मे 'म्लेच्छ' क्यों कहा था। विचारने पर इसके दो कारण हो सकते हैं—एक तो यह कि यवन सम्राट् के दरबार में रहने के कारण इन पर यवनों के संसर्ग का आक्षेप किया गया हो, और दूसरा वही, जो सर्वत्र प्रसिद्ध है कि इनका किसी यवनयुवती से संपर्क रहा हो। पहले कारण में तो प्रमाण देने की कोई आवश्यकता ही नहीं; क्योकि वे शाहजहाँ और दाराशिकोह के कृपापात्र थे यह निस्संदेह है। रही दूसरी बात, सो वह भी सर्वथा असंभव तो नहीं है; क्योंकि दिल्लीश्वर के कृपापात्र अतएव सर्वविध संपत्ति से संपन्न और तत्कालीन दिल्ली जैसे विलासमय नगर के निवासी नवयुवक को, उन उन्मादक नवयौवन के दिवसों ने, जो कंगालों को भी पागल बना देते हैं, यदि किसी यवन विलासिनी पर आसक्त होने के लिये विवश कर दिया हो और उन्होंने किसी यवनी को रख लिया हो तो आश्चर्य की क्या बात है। रही काव्यमालासंपादक की यह बात, कि यवन