पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३१२

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पृथक, विशेष प्रकार के जोड़-तोड़ की अपेक्षा रखनेवाले एवं ऊपरी तौर से अधिक चमत्कारी अनुप्रास केसमूहों तथा यमकादिको का, यद्यपि वे बन सकते हो, तथापि बनाने का प्रयत्न न करे, क्योंकि यदि वे अधिकता और प्रधानता से हुए, तो उनका समावेश रस की चर्वणा मे न हो सकेगा, और वे सहृदय पुरुष के हृदय को अपनी तरफ आवर्जित कर लेगे; इस कारण रस से विमुख कर देगे- अर्थात् सहृदय पुरुष उनके चमत्कार के चक्कर में पडकर रस के आस्वादन से वंचित हो जायगा। विशेषतः विप्रलंग-भंगार मे तो इस बात का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए; क्योंकि वह रस सबसे अधिक मधुर होता है, और इसी कारण, उसे शुद्ध मिश्री के वनाए हुए शरबत की उपमा दी जाती हैउसमे यदि वहुत थोड़ी सी भी कोई वस्तु ऐसी हुई कि जो अपना अड्गा अलग जमाने लगे, तो वह सहृदय पुरुषों के हृदय मे खटक जाती है, इस कारण ऐसी वस्तु का उसके साथ रहना सर्वथा अनुचित है। जैसा कि कहा भी गया है-

ध्वन्यात्मभते शृङ्गारे यमकादिनिबन्धनम्।
शक्तावपि प्रमादित्वं विप्रलम्भे विशेषतः॥

अर्थात् जिस ध्वनि काव्य का आत्मा लोकोत्तरचमत्कारकारी श्रृंगार रस है उसमे यमक-आदि की रचना करना, यदि कवि में उनकी रचना करने की शक्ति हो-वे स्वभावतः