पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २८३ )


का, देखना विभाव है, तथा नेत्रों के संकोच और विकास अनुभाव हैं; और, इनके द्वारा लज्जा और औत्सुक्य नामक भावों की संधि व्यग्य है।

भावशबलता

एक दूसरे के साथ बाध्य-बाधकता का संबंध रखनेवाले अथवा उदासीन रहनेवाले भावों के मिश्रण को 'भावशबलता' कहते हैं। मिश्रण शब्द का अर्थ यह है कि अपने अपने वाक्य मे पृथक पृथक रहने पर भी, महावाक्य का जो चमत्कारोत्पादक एक बोध होता है, उसमे सवका अनुभूत हो जाना। उदाहरण लीजिए-

पापं हन्त! मया हतेन विहितं सीताऽपि यद्यापिता
सा मामिन्दुमुखी विना वत! वने किं जीवितं धास्यति।
आलोकेय कथं मुखानि कृतिनां किं ते वदिष्यन्ति माम्
राज्यं यातु रसातलं पुनरिदम्, न प्राणितं कामये॥
xxxx
जो सीतहि मै मृतक तजी हा! कियो पाप यह।
मो बिन वन मे कहा जिएगी विधुवदनी वह॥
किमि सज्जन-मुख नैन यहै मम देखि सकेंगे।
अँगुरिन मोहिं दिखाय हाय! वे कहा कहेगे॥
जाय राज्य पाताल यह मोहिं न याकी चाह है।
प्रान हु करें पयान मुहिं इनकी ना परवाह है॥