पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/४९

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शब्दों को ढंग से जोड़कर पद्यादिक के रूप में परिणत करता है, उसी तरह वह जिन अर्थों का वर्णन करता है, उनको भी आवश्यकतानुसार नए साँचे में ढाल देता है। यही क्यों, यदि यथार्थ में सोचे तो यह कहा जा सकता है कि कवि के वर्णन किए जानेवाले पदार्थ उसी के होते हैं, वे ईश्वरीय सृष्टि के वास्तविक पदार्थों से पृथक् एवं केवल कविकल्पनाप्रसूत होते हैं। सच पूछिए तो ऐतिहासिक सीता-शकुंतला से भवभूति और कालिदास की सीता-शकुंतला निराली हैं। इसी प्रकार कालिदास का हिमालय और श्रीहर्ष का चंद्र भी लौकिक हिमालय और चंद्र से विलक्षण हैं। थोड़ा और सोचिए; सीता-शकुंतला आदि का तो इतिहास से कुछ संबंध भी है, पर भवभूति के "मालतीमाधव" को लीजिए; वह नाटक नहीं प्रकरण है; और यह सिद्ध है कि प्रकरण का कथानक कल्पित होता है। अब बताइए, उसमें जिन मालवी, माधव तथा अन्यान्य पात्रों का वर्णन है, उन्हें किसने उत्पन्न किया? विवश होकर यही कहना पड़ेगा—कवि ने। बस तो इसी बात को अन्यत्र भी लगाइए और समझिए कि कवि के वर्णनीय अर्थ मानस होते हैं, वास्तविक नहीं; अतः शब्दों की वरह वे भी कवि की कृति ही हैं। अतएव अग्निपुराण के ही शब्दों को लेकर ध्वन्यालोक में लिखा है—

अपारे काव्यसंसारे कविरेव प्रजापतिः।
यथाऽस्मै रोचते विश्वं तथेदं परिवर्त्तते॥