पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/८२

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है। उन्होंने इस सूत्र की ब्याख्या यों की है—'कामिनी आदि आलंबन विभाव रति आदि स्थायी भावों को उत्पन्न करते हैं, बाग-बगीचे आदि उद्दीपन विभाव उन्हें उद्दीप्त करते हैं, कटाक्ष और हाथों के लटके आदि अनुभाव उनको प्रतीत होने के योग्य बनाते हैं तथा उत्कंठा आदि व्यभिचारी भाव उन्हें पुष्ट करते हैं और तब वे रसरूप बन जाते हैं।' इसके अनंतर उन्होंने इस पर यों विमर्श किया है कि यह सब तो ठीक है; पर यह सोचिए कि वे रति आदि स्थायी भाव, जिन्हें आप रसरूप मानते हैं, रहते किसमे हैं? मान लीजिए कि आप एक ऐसे काव्य का अभिनय देख रहे हैं जिसमें दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम का वर्णन है। अब यह बताइए कि वह प्रेम काव्य में वर्णन किए हुए दुष्यंत से संबंध रखता है, अथवा आप जिसका अभिनय प्रत्यक्ष देख रहे हैं, उस नट