पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/९६

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इन्हीं में समावेश कर दिया है; वे हैं माधुर्य, ओज और प्रसाद। सो इस सबका सारांश यह हुआ कि दशगुणवाद के आविष्कारक हैं भरत और त्रिगुणवाद के हैं भामह।

प्राचीनों के मतभेद

यद्यपि प्राचीनों को दशगुणवादी कहा जाता है, तथापि उनमें परस्पर बड़ा मतभेद है। सच पूछिए तो काव्यप्रकाशकार के पहले इस विषय में अराजकता ही रही है और जिसकी जैसी इच्छा हुई, उसने उसी प्रकार के लक्षण बनाकर उतने ही गुण मान लिए हैं। उस अराजकता के समय का भी कुछ दिग्दर्शन यहाँ कराया जाता है।

गुणों के विषय में प्राचीनों के पाँच मत विशेषतः प्रसिद्ध हैं और उनके प्रवर्त्तक क्रमशः भरत, अग्निपुराण, दंडी, वामन और भोज हैं। उनमें से भरत के गुण हम गिना चुके हैं।

अग्निपुराण ने श्लेष[१], लालित्य, गाम्भीर्य, सौकुमार्य, उदारता, सती (?) और यौगिकी (?) इस तरह सात शब्दगुण; माधुर्य[२], संविधान, कोमलता, उदारता, प्रौढ़ि और सामयिकत्व इस तरह छः अर्थगुण; और प्रसाद[३], सौभाग्य, यथा


  1. श्लेषो लालित्यगाम्भीर्ये सौकुमार्यमुदारता। सत्येव (?) यौगिकी (?) चेति गुणाः शब्दस्य सप्तधा।
  2. माधुर्ये संविधानं च कोमलत्वमुदारता। प्रौढिः सामयिकत्वं च तद्भेदाः षट् चकासति।
  3. तस्य प्रसादः सौभाग्यं यथासंख्यमुदारता। पाको राग इति प्राज्ञैः षट् (प्र) पञ्च (?ॎः) प्रपञ्चिताः।