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हिन्दी-राष्ट्र
 

में स्वराज्य है वहां के व्यक्ति को कौन आँख उठा कर देख सकता है? संपूर्ण राष्ट्र की शक्ति अद्दष्ट रूप से उसकी रक्षा करती है। यही कारण है कि संसार के इतिहास में अगणित जन-समुदाय स्वराज्य के लिये अपने को न्यौछावर करते आये हैं। दूसरे के घर का न्याय-पूर्वक प्रबन्ध करना आजकल तो संभव नहीं है। कदाचित कभी भी संभव नहीं हो सकता।

चौथा लक्षण : भाषा की एकता

चौथा स्थान भाषा की एकता का है। भाषा की एकता राष्ट्र के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा चिन्ह है। राष्ट्र का प्रत्येक कार्य भाषा के द्वारा चलता है। साहित्य, विज्ञान, धर्म और राजनीति इन सब की शिक्षा भाषा के द्वारा ही होती है; अतः एक भाषा-भाषी लोगों में एक से विचारों का फैलना स्वाभाविक है। राष्ट्र की भाषा वही है जिसे अमीर-ग़रीब, स्त्री-पुरुष, पढ़े-बेपढ़े, शहर वाले व गाँव वाले सब समझते हों। राष्ट्र के लाभ के लिये या विद्या-प्रेम के कारण थोड़े व्यक्ति विदेशी भाषाओं को सीख सकतें हैं, किन्तु राष्ट्र की भाषा वही रहेगी जिसमें गाकर कवि गण राष्ट्र के गाँव-गाँव में आपनी वाणी पहुँचाते हैं, धर्माचार्य घर-घर उपदेश देकर लोगों को धर्म पथ पर आरूढ़ करते हैं, जिसके द्वारा सुधारक आन्दोलनकारी विचारों को फैलाते फिरते हैं, इतिहासज्ञ पुराना गौरव बता कर राष्ट्र को उत्साहित करते हैं और राजनीतिज्ञ राष्ट्र के हानि-लाभ को राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति के सामने रखने में समर्थ होते हैं।

अन्य अंङ्गों में समानता न होने से एक भाषा बोलने वाले