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क्या भारत एक राष्ट्र है?
 

यह स्वाभाविक है। कुछ प्रदेशों के लोग तो कभी कभी इस प्रादे शिक स्वार्थ के आगे जाति के स्वार्थ को भी भुला देते हैं। बङ्गाली ब्राह्माण महाराष्ट्र ब्राह्मण के सामने बङ्गाली कायस्थ को अधिक निकट समझता है। प्रादेशिक हानि-लाभ की यह विभिन्नता निम्नलिखित उदाहरण से अधिक स्पष्ट रूप से विदित होगी। मान लीजिए कि बंगाल प्रान्त के सब बड़े बड़े स्थानों पर महाराष्ट्र प्रान्त के लोग सुयोग्य होने के कारण नौकर रख दिए जायँ। इस अवस्था में बङ्गाल की आर्थिक दशा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या बङ्गाल के लोगों के कमाये धन का एक बड़ा भाग बंबई या पूना में नहीं पहुँच जायगा, जिसका उपयेाग महाराष्ट्र के नगरों में विशाल भवन बनने, महाराष्ट्र लोगों की सन्तानों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने तथा महाराष्ट्र के व्यवसाय की उन्नति करने में होगा? साथ ही बङ्गाल में बाँस की झोपड़ियाँ फूस की झोपड़ियों में परिवर्तित होने लगेंगी। होनहार बङ्गाली युवकों को अयोग्य बतलाये जाकर क्लर्की में अपने जीवन नष्ट कर ने पड़ेंगे तथा बङ्गाल का अपना व्यवसाय नष्ट होने लगेगा। आर्थिक हानि के सिवा बङ्गाल की भाषा, विद्या, धर्म तथा सामाजिक जीवन पर जो भी प्रभाव पड़ेगा, वह भिन्न है। प्रादेशिक हानि-लाभ की विभिन्नता को स्पष्ट करने वाली मुख्य बात यह है कि बङ्गाली लोग महाराष्ट्रों से ऐसा ऐक्य करने को कदापि उद्यत न होंगे।

इस सब से यह स्पष्ट हो गया होगा कि भारत में किसी प्रकार के भी हानि-लाभ का सुदृढ़ ऐक्य नहीं है—न व्यक्तिगत, न