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हिन्दी राष्ट्र
 

कार्य्य निकल सकता है। कुछ कुछ ऐसा ही रूप वहाँ आज कल है भी।

बहुत प्राचीन समय में शासन के कुछ स्वाभाविक विभाग हिन्दी-भाषा-भाषी भूमिभाग में थे। ये जनपद कहलाते थे। किसी नदी के किनारे कुछ दूर तक बसे हुए आर्य्यं लोग, जो उस समय की स्थिति के अनुसार एक दूसरे से सुविधापूर्वक मिल जुल सकते थे, एक पृथक् केन्द्र मान कर अपना स्वतन्त्र शासन स्थापित कर लेते थे। यह केन्द्र जनपद की राजधानी होती थी जहां जनपद और राजधानी के लोगों की अनुमति से चुना हुआ राजा मंत्रियों की सहायता से जनपद की रक्षा के लिए तत्पर रहा करता था। रामायण में कोसल जनपद के इस प्रकार के शासन की कुछ कुछ झलक देखने को मिलती है।

जब प्रजाबल क्षीण हो गया तो जनपद तथा पुरवासियों को सुनवाई शासन में नहीं रही। वंश परम्परा के अनुसार राजा होने लगे, चाहे वे योग्य हों या अयोग्य। ये राजा अपने कुल के लोगों तथा कुछ मंत्रियों की सहायता से शासन चलाते थे। प्रजा का हाथ शासन में से हट गया। महाभारत काल में प्रायः यही अवस्था थी। उस समय इन राजवंशों के लिए जनपद थे, जनपदों के लिए राजवंश नहीं थे। यह इस देश की शासन प्रणाली में पहला किन्तु बहुत बड़ा पतन था जिसका फल अच्छा नहीं हो सकता था। कुछ थोड़े से लोगों के हाथ में सम्पूर्ण देश की शक्तियों का इकट्ठा हो जाना तथा प्रजा के अज्ञान