ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ११० पूर्ववन के अनेक प्राचीन स्थानोंका वृत्तान्त एवं वडीय! : कार्य में नियुक्त हये। विद्यासागरको मुख्याति क्रमशः कवियोंका जीवनचरित लिखा और भारतचन्द्रको बढने लगी। १८५० ई०के दिसम्बर मासमें इन्हें संस्कृत लुप्तप्राय कविताको बड़े परिश्रमसे ढढ़कर छपा कालेजके साहित्याध्यापकका पद मिला था।' अनेक दिया। प्रबोध-प्रभाकर, हितप्रभाकर और बोधेन्दु विषयों में पाण्डित्य देख तत्कालीन भारतस्थ संस्कृतन्न विकाश नामक ग्रन्थ भी इन्होंने प्रभाकरमें प्रकाशित ! साहब विद्यासागरके पक्षपाती बने। उन्हींके यत्नसे किये। पोछे श्रीमद्भागवतका पद्यानुवाद करना। दूसरे वर्ष ही विद्यासागर संस्कृत कालेजके अध्यक्ष ईश्वरचन्द्रने हाथमें लिया था। किन्तु १७८८ शकको ( Principal ) हुये। इसी समय इन्होंने संस्कृत माघकृष्ण दशमी को आधौरातके समय इनका स्वग कालेजके सम्बन्धमें अनेक सुनियम बनाये थे। वास हो गया। ये वङ्गभाषाके एक असाधारण कवि थे। १८५५ ई में कालेजका अध्यक्षता रहते भी गवरन- ईश्वरचन्द्र विद्यासागर-वङ्गदेशके एक ख्यातनामा मेण्टने इनपर 'विशेष विद्यालय-परिदर्शक' (Special पण्डित। १७४२ शक (१८२० ई.) को आखिन Inspector of Sehools)का भार डाला! उभय कृष्ण मङ्गलवारके दिन मेदिनीपुर ज़िलेके वीरसिंह कार्य में इन्होंने मुख्याति पायी थी। नामक ग्राममें इन्होंने जन्म लिया। इनके पिताका ___फोर्ट विलियम कालेजमें रहते समय कप्तान मार्शल नाम ठाकुरदास वन्द्योपाध्याय था। १७२८ ई.को साहबने विद्यासागरसे अंगरेजी पढ़नेको कहा। रली जनको विद्यासागरने विद्याशिक्षार्थ संस्कत उसके बाद ही ये अंगरेजी सीखने में लग गये। उस कालेजमें प्रवेश किया। गभोर गवेषणा और धीशक्ति समय सिविलियनोंको पढ़ानेके लिये हिन्दीभाषाका के प्रभावसे अल्प दिवसके मध्य हो सस्कृत साहित्य प्रयोजन पड़ता था। इसी लिये विद्यासागरने हिन्दी- शास्त्र में इन्होंने पारदर्शिता पायी थी। विद्यासागरने भाषा भी पढ़ ली। गङ्गाधर तकवागीशसे व्याकरण, जयगोपाल तर्का संस्कृत-कालेजको अध्यापनाके समय तत्कालीन लक्षारसे साहित्य, प्रेमचन्द्र तकवागीशसे अलङ्कार, | गवरनमेण्ट-सेक्रेटरी हालिडे साहबसे इनका पालाप शम्भचन्द्र विद्यावाचस्पतिसे वेदान्त, रामचन्द्र विद्या परिचय हुआ। वे नाना विषयोंका परामर्श करनेके वागीशसे स्मृति और पहले निमाईचन्द्र शिरोमणिसे लिये सप्ताह पीछे एकदिन विद्यासागरको अपने घर तथा पीछे जयनारायण तर्कपञ्चाननसे न्याय पढ़ा। ले जाते और अनेक समय विद्यासागरका सत्परामर्श संस्कत कालेजसे इन्हें 'विद्यासागर' उपाधि मिला था।। ग्रहण करते। उन्होंके यत्नसे ये 'स्कूल-इन्सपेकर" विद्यासागरके पिताको आर्थिक अवस्था अच्छी न हुये । उस समय बङ्गला विभागके चार जिलोंमें कुल थी। अतएव बाल्यकालसे पाठावस्था पर्यन्त इन्हें दरि | २० मडल स्कूल थे। उन्हों बीस विद्यालयके परि- ट्रतावश अनेक कष्ठ उठाना पड़े। दर्शनका भार विद्यासागरपर न्यस्त था। इसी समय १८४१ ई०के दिसम्बर मासमें विद्यासागर फोर्ट बेथन साहबके मरनेपर तत्प्रतिष्ठित बालिका विद्या- विलियम कालेजमें प्रधान पण्डित रूपसे नियुक्त हुये।। लय गवरनमेण्ट के हाथ आया। ये वैथन स्कूलके . कार्यकारिता और विचक्षणतादर्शनसे संस्कृत कालेजके तत्वावधायक रहै और स्त्रीशिक्षा सम्बन्धमें विशेष कट पक्षने १८४६ ई के अपरेल मास इन्हें संस्कृत- यत्न करते थे। हालिडे साहबके उत्साहवाक्यसे कालेजमें सहकारी कर्माध्यक्ष ( Assistant secre- उत्साहित हो बङ्गालमें स्थान-स्थान पर विद्यासागरने tary )का पद सौंप दिया, किन्तु उसके दूसरे वर्ष ही ५०६. बालिका विद्यालय खोल दिये। किन्तु विद्यासागरने उक्त पदसे अवसर ग्रहण कर लिया। दुःखका विषय है, गवरनमण्टने उस वृहत् कार्य में १८४८ ईपके फरवरी. मास ये फिर फोर्ट विलियम मन ने लगाया। कुछ दिन पोछे इन्होंने समस्त कालेजमें पहुंचे और हेड राइटर (Head-writer)के बालिका विद्यालयोंके खरचाका बिल बनाकर Vol. III. 30
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