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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/११७

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११६ ईश्वरचन्द्र गुप्त वर्षके वयसमें शारीरिक नियमके लङ्घनवश इनको | पत्र निकाला था। १७५३ शकमें योगेन्द्रमोहन- के मरनेसे संवादप्रभाकर बन्द हुआ। परन्तु मृत्व हुई। गिरीशचन्द्र नामक इनके एक पुत्र थे। ईश्वरचन्द्रको सभामें एक प्रसिद्ध ज्योतिर्विद इसी वर्ष इनको कवित्व एवं रचनाशक्ति देख अन्ट्रलके रहते थे। उन्होंने सारदामङ्गल नामक एक सङ्गीत | जमीन्दार बाबू जगन्नाथप्रसाद मल्लिकने 'संवाद- ग्रन्थ बंगलामें बनाया था। रत्नावली' निकाली थी। ईश्वरचन्द्र इस पत्रिकामें ईश्वरचन्द्र गुप्त-विख्यात बङ्गाली कवि। ये कांचरा विशेष साहाय्य करते थे। पाड़ा निवासी हरिनारायण गुप्तके पुत्र थे। इनकी कुछ दिन पीछे ये श्रीक्षेत्रादिके दर्शन करने को माताका नाम श्रीमती देवी था। १७३२ शकमें कटक पहुंचे। यहां ये अपने मौसा श्याममोहन रायके फाल्गुन शुक्लपञ्चमी शुक्रवारके दिन ईश्वरचन्द्र गुप्तने घरपर रह एक दण्डोसे तन्त्रादि सीखते थे। १७५६ जन्म लिया था। बाल्यकालमें ये बड़े ही दुरन्त थे। शकके वैशाखमासने ईश्वरचन्द्र कलकत्ते वापस आये। लिखने-पढ़ने में इनका विशेष मन न लगता था। किन्तु इसौ वर्ष श्रावण मासके अन्तिम वुधवारको इन्होंने बाल्यकालसे ही कविता लिखनेका औत्सुक्य था। कन्हाईलाल ठाकुरके साहाय्यसे 'प्रभाकर' निका- ग्रामस्थ अपरापर बालक उस समय फ़ारसी पढ़ते | ला। १७५८ शकका आषाढ़ मास प्रारम्भ होते ही थे। ईखरचन्द्र उनके मुखसे फारसी कविताका अर्थ प्रभाकर प्रात्यहिक रूपसे प्रकाशित होने लगा। देशीय सुनते और स्वयं फिर बंगलामें कविता बनाते। प्रात्यहिक संवादपत्र में प्रभाकर ही प्रथम था। इसी ईखरचन्द्र जन्मकवि थे। पाठ्यावस्था में ये केवल समय पण्डित और नगर तथा ग्रामके सम्भ्रान्त जमी- कविताको चर्चा चलाते थे। मानो कविता हो इनका न्दार नानाप्रकारसे ईखरचन्द्रको साहाय्य देने लगे। और कविता ही इनका प्रधान लक्ष्य था। १७६७ शकके आषाढ़ मास इन्होंने 'पाषण्डपोड़न' कवित्वगतिकी भांति ईखरचन्द्रकी श्रुतिशक्ति भी। नामक दूसरा पत्र निकाला था। इसी समय 'भास्कर'- बहुत चमत्कारिणी थी। १७१८ वर्षके वयसमें | सम्पादक गौरीशङ्कर तर्कवागीश 'रसराज' नामक एक डेढ मासके मध्य इन्होंने मुग्धबोध व्याकरण मुखस्थ पत्र प्रकाश कर ईश्वरचन्द्रसे कविता-युद्धमें प्रवृत्त हुये। किया। कलकत्तेको ठाकुरगोष्ठोसे ईश्वरचन्द्र के | इन्होंने भी 'पाषण्डपोड़न' पत्रमें 'भास्कर'-सम्पादकको मातामह वंशको कुछ मित्रता थी। इसी सूत्रसे | कविताका प्रतिवाद प्रारम्भ किया था। इसी तरह ठाकुरबाड़ी ये सर्वदा आते-जाते थे। क्रम-क्रमसे | दोनोमें अनेक दिन कुत्सापूर्ण कविताको लड़ाई लगी पथरियाघट्टा-निवासी गोपीमोहन ठाकुरके पौत्र रही। किन्तु कुछ समय बाद दोनों पत्र बन्द हो गये। योगेन्द्रमोहनसे ईश्वरचन्द्रका बन्धुत्व बढ़ा। उभय पाषण्डपीड़नके उठ जानेसे १७६८ शकके वैशाख समवयस्क थे। इनके सहवाससे योगेन्द्रमोहनमें भी मासमें इन्होंने साधुरन्जन' नामक दूसरा पत्र निकाला। रचनाशक्ति उपजी थी। इसमें ईश्वरचन्द्र के छात्रोंको कविता और प्रबन्धावली १५ वर्षके वयःक्रमकालमें गुप्तपाड़ा-निवासी गौर- | छपती थी। १७७४ शकके वैशाख माससे यह एक हरि मलिकको कन्यासे ईश्वरचन्द्रका विवाह हुआ। वृहत् कलेवरका प्रभाकर निकालने लगे। यह प्रति दुर्गामणि देखने में बहुत अच्छी न लगती थी, गूगो-जैसी, मासको पहली तिथिको निकलता और इनकी स्त्रीय समझ पड़ती थीं। इसलिये उनसे इनका मन न भरा कवितासे पूर्ण रहता था। उक्त स्वतन्त्र मासिक और विवाहके बाद ही बोलचाल बन्द हो गयौ। प्रभाकर निकालने में ईश्वरचन्द्र को अतिरिक्त परिथम दोनो चिरदिन सोच-सोचकर जलने लगे। उठाना पड़ा, इसीसे इनका क्रमशः स्वास्थाभन . १७५१ शकमें योगेन्द्रमोहन ठाकुरके साहाय्यसे । होने लगी। इससमय ईश्वरचन्द्र कलकत्तेमें रह ईखरचन्द्रने, 'संवादप्रभाकर' नामक एक साप्ताहिक । अधिकांश समय किसी बागमें विताते थे। इन्होंने