पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१२५

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. ईसा: १२४ बनाया। साथ रहते-रहते उन्हें इनके धर्मोपदेशमें , प्रकार नास्तिकता ( athiesm ) को अपना परम धर्म अभिन्नता आ गयी थी। धर्मग्रन्थमें उन्हींको द्वादश जाना। जब प्रतीच्य जगत्का पौत्तलिक सम्प्रदाय 'अपोसल' (Apostle=देवानुराहोत व्यक्ति) माना है। प्रकृतपक्षसे नास्तिकतामें डबा और यहूदीय सम्प्रदायका धर्म शास्त्रीय आचारके प्रतिपालनमें कपटता रखने अपनी मृत्यु के पीछे यह धर्माभिव्यक्ति धीरे धीरे फैला-/ नेके उद्देश्य से ईसान उन हादश व्यक्तिको निज मतमें पर हृदयसे छूटा, तब ईसा तारेकी तरह मानो विशेषरुप दीक्षित किया था। उक्त 'अपोसल' अशि- आकाशसे टूटा था। चित, अज्ञान, निर्धन और मर्यादाहीन रहे। इनकी धर्मनैतिक तथा राजनैतिक जगत्में ऐसा विपर्यय अलीकसामान्य प्रतिभामें ऐसे ज्ञानहीन लोग भी पड़ते हो क्या यहदी क्या जन्ताइल-सकल ही साधारणके चित्तसे वदमूल चिरन्तन संस्कार, श्रेष्ठ परित्राणप्रार्थी हो किसी परिवानाके आनेकी राह मनीषियोंको प्रतिपादित धर्मप्रणाली और दृढभक्तिपर देखने लगे। पैग़म्बर-परम्परासे ईश्वर के अवतारका प्रतिष्ठित नैष्ठिक आचारादि समूल उत्पाटित कर जो उल्लेख होते पाया, सरलचित्त इसराइलाके हृदय सके थे। अतःपर ईसाने अपने मतावलम्बियोंमें ७० पर भी उसी विश्वासने अपना प्रभाव जमाया। व्यक्तिको शिष्य ( Disciple) बना वाञ्छित पथपर भाजिल, तासितास, सुयेटोनियास, जोसेफास् प्रभृतिने दो-दो भेज दिये ( Luke x. i.)। इन सप्तति शिष्यके लिखा, कि तत्कालके पाश्चात्य सभ्य जगतने प्राय नियोगकी कथा अन्यान्य ईसाचरितकार (Evangelist)-| देशसे ही अपने पवित्रात्माको ढंढ़ लिया था। ने नहीं लिखी। इसी उत्कण्ठा और अवतारागमको आशाके दिन . जब ईसा इस प्रकार शिष्यसह धीरे-धीरे अपना ईसायी-धर्मगुरु बाप्तिस्त जोहन (John) सत्यधर्म धर्म फैलानेको आगे बढ़े, तब पाश्चात्य सभ्य-जगत्में फैलाने लगे। उन्होंने कहा था,-मूसाका विधि शक्तिशाली रोमक समृद्धिको शीर्षसीमापर चढ़े थे ! | माननेवाली सत्यमार्गाश्रयो यहूदी जातिमें मसीहा जलियस सीजरके प्रभाव और अगस्तासके कूट शासनसे अवतार लेंगे। उनके भाव, भङ्गो, भक्तिगुण और साम्राज्य उन्नतिके चरम पदपर पहुंचते भी ऐश्वर्य परिच्छदादिको देख लोगोंके मनमें एलिजा प्रभृति मदमत्त रोमकोंने दाम्भिकता वश क्रमश: अवनत होते पैगम्बरको कथाका स्मरण आ जाना था। सकल ही गया। ताइबिरियास के राजत्वकालसे यह अवनति उनके वाक्यपर विश्वास लाते। सन्यास और निर्जन चित्र नानावर्ग में ढला। ईसायो युगारम्भसे प्राक्काल प्रदेशका योगालय देख लोग उनसे बहुत मिलजुल रोम-साम्राज्यपर अत्याचार और अनाचारको घोर गये थे। धर्मोपदेश सुनकर साधारणमें इतनी हलचल छाया पड़ी थी। रोमक नृपतिके गृहविवादपर पड़ी, कि सहस्र-सहस्र लोगोंने जर्दन-नदीतीरपर पामीय स्वजनहत्या में फंसते राज्यमध्य विषादकालिमा | जाकर जोहनसे दीक्षा ली। लगी और अधीनस्थ परराष्ट्रापहारी निर्दय एवं अत्या महात्मा इसाको वनमध्य इतने काल ईश्वरचिन्तामें चारी इदुमीय वंशीय राजाके हस्त जाते युदियाराज्य- निमग्न रहते भी ज्ञानलाभको प्राशासे निर्जनम्यह की उत्पीड़न व्यथा उससे भी अधिक जगी। युदियाके वास छोड़ देना और ईश्वर-चिन्ताका पथ परिष्कार अत्याचारप्रिय राजाका अनुष्ठित वीभत्स्य दृश्यसमूह करनेकी प्रत्याशासे ईश्वरवाक्यविघोषक अपने अग्रगामी प्राचीन जगत्में दूसरी जगह कहीं देखने में नहीं आया। उन्हीं महापुरुषके पास पहुंच जर्दनपर दीक्षाको - साम्राज्यको ऐसौ दारुण उच्छुशल अवस्थामें रोम लेना पड़ा। उसी समय इनको निष्कलङ्ग सौम्यमूर्ति देशवासीके इदयमें क्रमशः प्राचीन धर्मप्रभाव हट रहा | देख निजैनवासी निर्भीक प्रचारक जोहनका हृदय था। अनेक ज्ञानवान व्यक्तिने टोयिकका निर्विकार हार गया था। उन्होंने पवित्रताको प्रतिमूर्ति निष्पाप- बाद ( stoicism) माना और लोगोने प्रायः एक' देह ईसाको दीक्षा देना न चाहा। क्योकि उन्हें