पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१२४

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ईसा १२३ होनेपर यूसुफ समझ गये-मेरी पत्नी मेरी अनढा- | जाननेका प्राभाष मिलता है। बाइबिल देखनेसे वस्थासे हो गर्भवती है। सुतरां उन्होंने चुपके स्वीय | मालूम पड़ता है-ईसाके एहमें अध्ययन होता था पत्नीको छोड़ पृथक् रहनेको ठहरायो। उनके चित्तका (Deut, vi. 4, Psalms cxiv-cxvii)। धर्म- भाव परख परम पिताने देवदूत भेजा था। यूसुफने । पुस्तकको आलोचना हो इनका मुख्य उद्देश्य रहो। निद्रावस्थामें स्वप्न देखा, मानो देवदूतने उनको लक्ष्य ईश्वरप्रसिद्ध ग्रन्थावलोने प्रकतपक्ष में ईलाका प्राचार्य- कर कहा-मेरीके गर्भमैं णरूपसे विद्यमान शिशुको पद पाया था। इनके चित्तमें सर्वदा ईखरका आदेश- 'पवित्रात्मा (Holy Ghost)का बालक-जैसा समझो; वाक्य गूंजते रहता। जितने दिन वह प्रसूत न हो, उतने दिन मैरोसे यह हादश वर्षके वयःक्रमकाल शिक्षा समापन करनेपर संवाद छिपावो; उन्हें पत्नो-रूपसे ग्रहण करो और यहूदी-बालक ईसाकी व्यतपत्ति धर्मशास्त्र में विशेष जातबालकका नाम ईसा (Jesus) रखो। बढ़ गयी थी। उस समय लोग इन्हें सर्वत्र 'काननके - यथेच्छाचारी राजा हिरोद ईसाके जन्म-समय बेटे' (Son of law ) कहने लगे। मातापिताके अलौकिक और अत्याश्चर्यकर घटना पड़ते देख प्रति ईसाको भक्ति और श्रद्धा यथेष्ट रही। यह कभी विस्मयाविष्ट हुये। पूर्वग्रोक्त भविष्यवाणो वर्णित जन्मका कभी पिताको सूत्रधारवृत्ति उठा उनका परिश्रम घटा वृत्तान्त एवं स्थानादिका ऐक्य गंठ जानेसे वह मन ही देते थे। तीस वर्षके वयःक्रम पर्यन्त ईसाने सांसारिक मन अपनेको विपदग्रस्त समझने और इस भयसे जीवन अतिदीन भावसे बिताया (Mark 6-3)। हादश बालकके व ससाधन पर झपटने लगे, कहीं परिणाम में वर्षे शिरोभूषा ( Phylacteries ) पहना धर्मतत्त्वोप. वह परम शत्र न निकले। तदनुसार ईसाको मृतु | देशकके पदपर अभिषिक्त करनेके मानस मेरी और अलङ्घनीय बनाने के लिये राजाने बेथलेहेम और तत् | यूसूफ़के जेरूसलम नगर लानेसे ईसाको प्रतिभा पाववर्ती स्थानवासी दो वर्षवयस्क यावतोय शिशु मार प्रवीण यादी-पण्डित-समाजमें समा गयी थी। एक डालनेको आदेश दिया था। इसी दुर्घटनाके समय दिन मन्दिरमें बैठ ईसाने मनीषियों-( Doctors )से एक देवदूतने पहुंच निशायोगसे निद्रित मेरो और इतना धर्मविषयक प्रश्नोत्तर किया, कि अतिकाल हो यसुफको स्वप्नमें चेताया,-तुम इस बालकको उठा। जाने का बिलकुल अवधारण न रहा। मातापिताने शीघ्र ही मिशर राज्यमें भाग जायो। समझा, पुत्र कहीं खो गया था। वे इतस्ततः अन्वे- ___महात्मा मथी इतना ही लिखकर निश्चिन्त हो गये षणमें व्यापूत हुये। अवशेषमें अबोध बालकको हैं। किन्तु लक (St Luke)के सुसमाचारमें प्रकाशित पण्डितमण्डलीकी मीमांसामें पड़ा देख उन्हें बहुत है-सूतिकाके शौचान्त मेरी पार यूसुफ पवित्र विस्मय लगा था। मन्दिरमें समर्पणार्थ बेथलेहेमसे जातबालक ईसाको हादशवर्ष जेरूसलम आने और विशवर्ष यादी उठा जेरूसलम नगर पहुंचे थे। वहां यथाविधि कृत्य | पुरोहित-पुत्न जोहन-दी-बाप्तिस्तसे जर्दन नदीतोर सम्पादनके बाद वह पुत्रको कोड़में दबा जन्मभूमि | दीक्षा लेनेतक अष्टादश वर्षकाल ये गार्हस्थ-जीवनमें (गालिलोके अन्तर्गत ) नजरेथ नगरको ओर चले। व्यस्त रहे। दीक्षाके बाद ईसा धर्मप्रचार पर व्रती इस स्थानपर बालोचित शिक्षाके साथ-साथ ईसाके | हुये। इन्होंने स्वीय धर्म फैलाने, ईश्वरको प्रेरणासे ज्ञानका विकाश भी बढ़ने लगा। तीक्ष्ण बुद्धि और देवकार्य ( Divine mission) बनाने और अपना प्रतिभाने ही भविष्यत्में इन्हें जगत्का उच्च पद सौंपा | मत चलानेको प्रायः तीन वर्ष नानारूप अलौकिक था। कहना दुःसाध्य है-ईसाने विद्यालयमें शिक्षा | कम देखाया था। ईसाने ईश्वरसे जो पवित्र धर्म पायौ या नहीं। पाया, साधारणमें उसी पवित्र वाक्यके प्रचारार्थ द्वादश ...... इनके ग्रीक, धर्मीय, हिब्र और लातिन भाषा ' सच्चरित्र साधु पुरुषको मनोनीत कर अपना साथी