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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१२८

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१२७ लठ रहा। लोग ईसाको 'यहूदियोंका राजा' कहकर ले गये। वहां उनकी मङ्गलकामना कर इन्होंने अपना ‘चिढाते और निर्दय सिपाही 'रोमके वेत्रदण्डकी शेष आदेश मानने को समझाया था। इसी प्रकार भांति' दारुण रूपसे प्राघात लगाते थे। ऐसी अवस्थामें पाशीर्वाद देते देते ईसा उनके सामने मेघ मध्य समा भी पिलेटने फिर एकबार यहदियोंका चित्त खींचने गये । चालीस दिन पोछे इन्होंने स्वर्गारोहण किया। को करुण कण्ठसे स्वीय आवेदन ज्ञापन किया। स्वर्गारोहणकै पचास दिन पीछे ईसाको शिष्य- शेषको पुरोहितोंका तर्जन-गजन सुन उन्हें साधारण मण्डली पेण्टेकष्ट भोजोत्सवके समय जेरूसलम समक्ष इनके क्रूशारोपका आदेश देना पड़ा। नगर में समवेत हुई थी। इस दिन शिथों पर पर- ___अनन्तर यहूदी दो दस्यु और ईसाको क्रूशपर मात्माका भर हुया और उन्होंने सकल भाषावों में चढ़ाने के लिये गोलगोधेको ओर ले चले। अपने उपदेश दे जनसाधारणको विमोहित किया। इसी हस्तमें कौल ठकते समय भी इन्होंने हत्याकारियों को दिन इसी मुहर्तपर उनके भावसे मुग्ध हो प्रायः तीन मुक्ति के लिये प्रार्थना की थो। ईसाके मृत्यु कालको सहस्र लोग ईसाई धर्म में दीक्षित हुए थे। अतःपर वाक्यावली ईश्वर-विश्वासको सुगभोर परिचायक है। ईसा-नियोजित अपोसलों और शिष्योंने पृथिवीके नाना जो विद्देषी और अत्याचारी यहूदी इनके क्रयपर स्थानों में जा ईसाईधर्म प्रचार करना प्रारम्भ किया। चढ़ते समय उपस्थित रहे, वे भी उदारता एवं सब पहिले मध्य-एसियामें धर्मप्रचार कार्यपर व्रती गाम्भीर्य देख नयनजलमें डब और 'हा हतोऽस्मि' बने थे। विश्वासघातक खुदास के बदले मथियास कहते तथा करसे वक्ष कूटते जेरूसलम नगर लौट (Matthias) अपोसल मनोनीत हुये। (ये यहूदीवंश गये। सन्ध्याके प्राक्काल सिपाहियों ने क्रूशपर सम्भूत थे पीछे पल नामसे प्रसिद्ध हुये।) दूसरे एक चढ़े दस्यद्वयक पदद्दय तोड़ कर भेज दिये थे। तत्काल जोहन भी 'अपोसल' बने थे। उन्होंने मरने या न मरने की परीक्षा लेने को ईसाके मथी, मार्क, लक और जोहन प्रभृति महात्मा- मृत वक्षमें अस्त्र भोंका। अनन्तर सन्धमाके बाद वोंने जो लिखा, उससे ईसाको ऐसी एक पार्थिव जीव- समाधिकार्य-सम्पादनको असम्भव समझ उन्होंने झटपट नीका चित्र उतारा गया। इनका आध्यात्मिक जीवन इन्हें मट्टी दी थी। शासनकर्ताके आदेशकमसे निको.. | वा धर्मतत्त्व (Christianty ) जिस सकल उपादानसे दिमाम और पारमाथियावासो यूसुफ ने ईसाके मृत मंठा, वह यथास्थान लिखा है। ईसाई देखो। शवको यथारीति कब में रखा। शुक्रवारको सन्धया पाश्चात्य ऐतिहासिकोंने इसका कोई प्रमाण नहीं समय महात्मा ईसा मसौहका समाधि लगा था। दिया, पौत्तलिक प्रधान पाश्चात्य जगत्में किस उद्दी- रविवारको अतिप्रत्यूष मेरी इनके समाधिस्थानपर पनासे कौन उपादान उठा ईसाने नतन धर्म प्रचारमें पहुँचौं। रजनीको देवदूतसे ईसाके पुनरभ्युत्थानको अग्रगमन किया था। ईसाई भी इसका कोई ठोक बात सुन वहां गयी थों। । प्रमाण बता न सके, अपने अन्नातवासकाल ईसा किस बाइबिल ग्रन्थ के John xx. 17, xxi. 1-24, देशमें रहे। सम्भवतः इनके पिता इन्हें मिशर ले आये Matt xxviii. 9-10, Luke xxiv. 13-32, थे। बाइबिलके नाना स्थलोमें जेरूसलमनगरके पूर्व- 34, I Cor. xv. 3, 5, 8. प्रभृति स्थलमें ईसाके. दिकसे मसीहाके आविर्भूत होने का प्रसङ्गादि विकृत पुनराविर्भावका उल्लेख मिलता है। प्रथम ईष्टर रहने पर स्पष्ट ही समझ पड़ता है, कि यहृदो-प्रधान दिवस (Easter day)से ४० दिन पर्यन्त इन्होंने स्वीय पालेस्तिनके पूर्वाञ्चल ही ईसाईधर्मका झण्डा उड़ा था। भक्त शिष्यों और अपोसलों के सम्म ख प्राविभूत हो पूर्वाञ्चलवासियोंपर ईसा और उनके भक्तों के एतादृश उनके प्रति धर्मतत्त्व सम्बन्धमें उपदेश दिया था। अनुराग रहनेका कारण क्या है? इस बातको प्राच्य 'शेष दिन ईसा भक्तपाण शिष्यों को बेथनीके अभिमुख । वा प्रतीच्छ वुधमण्डलीका कोई व्यक्ति इतने दिनतक