पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१३१

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ईसाई १३० चलते हैं, वे ही उनकी कृपाका लाभ करनेवाले। भक्ति और एकमात्र विश्वाससे पापोको मुक्ति होती ईसाई कहलाते हैं।"* है। पापीको परित्राण एवं पवित्रता दिव्यात्मा दे ३०६ ईमें विख्यातपण्डित लाकटेन्सियास ने सकता है। ८पामा अविनखर है। ईसाका देह लिखा है,-"जो स्थलपथसे चोरी और जलपथसे नष्ट होकर भी उठा था। महात्मा ईसाके शेषविचारसे डकैती करते हैं, वे ईसाई हो नहीं सकते। स्त्री, पति दष्टों को अनन्त शास्ति और शिष्टों को अनन्त स्वर्गीय वा पुत्रघातियों, भ्रणहत्याकारियों,कन्यागमनकारियों, सुखोपलब्धि हुई। ८ ईसाई धर्ममण्डलीका मत इन्ट्रियको परिप्तिके लिये दूसरेसे कामनाकारियों वा एखरिक समझकर स्वीकार किया जाता है। ईसाई भिन्न पुरुषके हस्त देहविक्रयकारियों में किसीको धर्म में दीक्षित होनेका कर्मकाण्ड चिरदिन प्रतिपाल्य ईसाई नहीं कहते। किसी प्रकारका पाप करने और और अवश्यकर्तव्य है। ईसाके कशारोपपर मृत्य से मनसे भी अपरका अनिष्ट चाहनेवाले ईसाई कभी पूर्वरात्र मशिष्य भोज ( Lord's Supper )का होना नहीं। सत्य-जैसे विश्वासका विषय है। ईसाई धर्मवेत्ता अरिगेन कहते हैं,-"जो धन ईसा मसीहसे पूर्व जेरूसलम, अन्तियोक प्रभृति स्पृहा नहों रखते, जो निज अधिक्कत सम्पत्ति अन्यके स्थानमें यहूदीयों कुसंस्कारावच्छिन्न और उनके याजकों चन्यायपूर्वक लेते भी कुण्ठित नहीं होते और जो अर्थलोभी तथा अत्याचारी हो गये थे। कुसंस्कार सरलता, पवित्रता एवं उदारताको अलङ्कार समझते और अत्याचार हटानके लिये ईसा नाना स्थानों में हैं, वही प्रकत ईसाईधर्मको मानते हैं। अपना मत फैलाने घूमे। उन्होंने जो सकल मत 'ठीक तौर पर कह नहीं सकते-ईसा मसीह फैलाया, उसका अधिकांश यहूदो जातिके प्राचीन भक्तोन कब किसके द्वारा खुष्टान या ईसाई नाम धर्मग्रन्थों में पाया जाता है। इससे बोध होता है- पाया। किसोके मतसे अन्तियोक नगरमें यह नाम ईसा-प्रवर्तित ईसाईधर्म यइदो धर्मका ही संस्कार प्रथम निकला था। वहां अपरापर सम्पदाय यह ठहरहा और प्राचीन यहूदी धमसे ही उपजता है। दियोंसे पृथक करनेके लिये ईसाइयोंको विद्रूपभावसे ईसाने अपने प्रधान बारह शिष्योंको साधारणका 'खष्टान कहकर पुकारते थे। उसी समयसे यह कुसंस्कार छुड़ानेके लिये नियुक्त किया। ये बारहो नाम चला आता है। लोग धन, मान वा शिक्षा कुछ भी न रखते थे। तथापि प्रधानतः ईसाई सम्प्रदायको इन कई मतोको | उनकी बात सुन संकड़ों व्यक्ति ईसाई धर्ममें दोक्षित मानकर चलना पड़ता है-१ बाइबिल वा ईसाई हये। सर्वप्रथम जेरूसलम नगरमें ईसाई-समिति धर्मपुस्तक ईश्वरका वाक्य होनेसे समस्त हो प्रामाण्य स्थापित हुई थी। इसी समय यहूदियोंने ईसाइयोपर और ग्राह्य है। २ बाइबिल सर्वतोभाव आलोच्य है। घोरतर अत्याचार किया। अनेक कष्ट एवं अनेक ३ ईश्वरके एकत्व, ईखर और ईसा तथा दिव्यात्मा दुःख सहकर ईसाके प्रधान शिष्योंने जेरूसलम, ( Holy Ghost )का त्रित्व ( Trinity) स्वीकार्य है। अन्तियोक, इफेसास, स्मिरना, प्राथेन्स, कोरिन्थ, रोम ४ आदि मानवका पतन हो मानवजातिके पापका और अलेकजन्द्रिया नगरमें ईसाई धर्ममन्दिर बनवाया कारण है। ५ मानव-वाणके लिये ईसाका पामोत- था। सर्वप्रथम जेरूसलम नगरमें ईसाई धर्ममन्दिर मग, उनका ईखरके प्रियपुत्र तथा पवतार होना और स्थापित हुआ। इसीसे ईसाई जेरूसलमको अपनी उनका कार्य कलापादि विश्खास्य एवं स्वीकार्य है। समाजकी जननी और महापुण्यभूमि समझते हैं। • Rev. Charles Buck's Theological ईसा पौर बाइविल शब्दमें विस्त त विवरण देखो। Dictionary, p. 65,69. ईसाके प्रधान शिष्योंने जो सकल समाज स्थापन t I, Eadie's Biblical Cyclopaedia. | किये,परवर्तीकालमें वही ईसाई-धर्मावलम्बियोंके महा-