किसी १३२ है। ई० षोडश शताब्दमें स्पनदेशवासी इग्नेसिया। बल वे पोपको धर्मनीतिसे अधीन युरोपके सकल लोयोला ( Ignatius Loyola ) नामक एक व्यक्तिने | काथोलिक राज्यमें फैल पड़े और सर्वत्र बालक यह समाज बनाया था। उस समय भी स्पन प्रभृति बालिका आदिको धर्मको शिक्षा देने लगे। राह घाट देश पोपको धर्मनोतिके अधीन थे। पोपके आदेश विना | जङ्गल पहाड़ नाना स्थानमें जेसुटोंको गतिमतिसे | धर्मसमाजको बनानेके लिये किसीको वक्तताका स्रोत फूट पड़ा था। सभ्य असभ्य उच्च अधिकार न था। सुतरां लोयोलाने पोपको समाचार नीच सैकड़ों व्यक्तियोंने जैसुटका मत मान लिया। दिया,-"ईश्वरादेशसे हम यह समाज स्थापन करने के जैसट कितने ही राजावों और राज परिवारोंके धर्मगुरु लिये अग्रसर हुये हैं। अब आपको अनुमति सापेक्ष है।" एवं दीक्षागुरु बन बैठे। वे केवल धर्मको हो पोप और उनके सदस्योंने लोयोलाका श्रावेदन सुना चला शान्त न हुये, पोपको सनदके बल भारत और न था। लोयोलाने सोचा-यह कार्य पोपके हाथमें | अमेरिका आ बाणिज्यव्यवसायभी चन्नाने लगे। युरोपके रखना चाहिये, नहीं तो सिद्धि मिलना कठिन है। नानास्थानों में उनके बाणिज्यालय खुला गये। वाणिज्य- उन्होंने फिर इसतरह आवेदन दिया,-"यह समाज के ही लोभसे वे देश-विदेश पहुंच उपनिवेश करने पोपके सम्म कौन है। इसके लोग विशुद्धचरित्र, लगे। इसी प्रकार बणिक्के वेशसे जेसुट दक्षिण धर्माश्रममत. पोपको आज्ञाके अधीन और अति दीन अमेरिकामें शस्यशाली पारागुया राज्य के अधोखर बन दरिद्र हैं। इसके सन्तानीको जो कुछ मिलेगा, बैठे। उन्होंने उक्त स्थानके आदिम अधिवासियोको उसोपर धर्मपिताका अधिकार रहेगा। जो जाति | ईसाई धर्मकी दीक्षा दी। असभ्यो को जेसुटों ने सभ्य इस समाज में प्रायेगी, ईसाई धर्मको प्रजा ठहरेगी बनाया। देश रीति के अनुसार उन्होंने यह प्रबन्ध भी और पोपको धर्मपिता-जैसा मानेगी।" इतना प्रलोभन किया,-स्थानीय आदिम अधिवासो युरोपको किसी देख महामति पोप किसी बातपर आपत्ति लगा न अपर जातिके साथ मिलने-जुलने न पायें। वैदेशिक सके ; प्रावेदन ग्राह्य होनेपर जेसुट अपने कार्यक्षेत्र में आक्रमणसे राज्यको रक्षा करना पड़ती है। इसोसे अग्रसर हुये। जेसुटोंने इन अधिवासीयोंको तोप, बन्दूक और तलवार __ पूर्वतन ईसाई याजकों और यतियोंने नियम रखा चलाना सिखाया था। अब जेसुट दोन होन धर्म- धा-हम किसी सांसारिक कर्ममें लिप्त न होंगे, प्रचारक नहीं, पराक्रान्त बणिक और अधिपति देख निर्जनमें निभृत स्थानपर बैठ केवल ईश्वरको चिन्ता पड़ते हैं। करेंगे और मानवको नानालोक देंगे। किन्तु ई के १३वें और १५ वें शताब्दसे रोमन काथोलिक बिसुट-समाजने इस सकल बन्धनको तोड़ डाला। भारतमें बहुत आने लगे। उनमें अधिकांश हो पोत- नियम निकला था-अपर ईसाई याजक, यति और गोज़ रहे। किन्तु तत्काल पोत गोज सिपाहियों प्रधान धर्मोपदेष्टा जो सकल कार्य करेंगे, इस और देशीय राजावोंके दारुण उतपीड़नसे पोतंगोज़ समाजके साथ हम उनका कोई संस्रव न रखेंगे। इस ईसाई यति कुछ भी कर न सके। उस समय भारत- समाजके लोग देश, काल, अवस्था और पात्रके भेदसे वासियोंने ईसाई यतियों के साथ घोर अत्याचार एवं कभी उक्त असिके इस्त, तथा कभी दीन दरिद्र वेशसे दुर्व्यवहार किया। ईसाई यतियोंके साथ सैकड़ों कमी राजाके प्रासाद एवं कभी कृषकके शस्य क्षेत्र में अपर व्यक्तियों का रक्त बहा था। उस समय केवल पहुँच भयके प्रदर्शन, उद्दीपन अथवा प्रलोभन द्वारा होजों के अधिक्कत गोया प्रभृति स्थानों में निर्विवाद व स्व कार्य उद्धार करेंगे। जैसे बने, ईसाई धर्म | । ईसाई धर्म चला। चलाना हो इस समाजका मुख्य उद्देश्य है। पोर्तुगाल के राजा एमानुएल (१४८५-१५२१ ई.) जीस्टोको. पोपने. सनद दी थी। उसी सनदके और उनके पुत्र जोड्नने ( १.५२१-५७ ई.) भारत-
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