ईसाई (Patriarch ) बने थे। उक्त उच्चासन मिलनेसे अल्प-1 नेटोरियान् धर्मग्रहण करने वाले मुगल बादशाहोंमें काल पीछे ही ईसाके देव और मानव प्रकृति-सम्बन्धपर कराकोरमके अधिपति अवङ्कखान् प्रधान थे। चङ्गज. घोरतर तक चला। अनाष्टे सिया नामक एक पुरो- खानसे हारने पर उन्होंने अपने को प्रष्टर-जोपाओ हित नेष्टोरियाक साथ कनस्तान्तिनोपल पहुंचे थे। ( Prester John) अर्थात् जोहन (नामक) याजक एक दिन उन्होंने उपदेश देते समय कहा,-कुमारी बताया था। मेरी ईखर वा देवपुरुषको माता हो नहीं सकती. ई के १६वें शताब्दको नेटोरियान् समाजमें कुछ वह मानव ईसाकी माता हैं। इस बातको सुनकर गड़बड़ पड़ा था। उस समय कितने ही लोगों ने अनेकोंने समझा, कि वह नेष्टोरियाका मत नेटोरियाने अपनी बात समर्थन करने के लिये घोषणा उन्हें कालदी ईसाई कहते हैं। वे सकल ही प्राचीन की-'ईसाको दोनो प्रकृतिमें भेद है। उनका देह मत मानते हैं। कुर्दिस्थानके पार्वतीय राज्य में इस मानवप्रकृतिसे बना, किन्तु उनका उपदेश देवप्रकृतिसे समय प्रधानतः नष्टोरियान् रहा करते हैं। किन्तु छना है। उस समय ईसाई-जगत्में इस बातपर तुमुल वे दरिद्र और मूर्ख हो गये हैं। उनके पुरोहित आन्दोलन उठा था। अलेकन्ट्रियाक धर्माचार्य और निम्नश्रेणोके याजक विवाह कर सकते हैं। सेण्ट-साइरिल उनसे बिगड़ पड़े। फिर रोमसे विवाहादिमें धर्माचार्यका मत लेना पड़ता है। वह बिशप सिलेष्टाइनने नेष्टोरियासे कहला भेजा, यदि मृतको मूर्तिके उद्देश्यसे स्तवपाठ करते और सिवा तुम अपना मङ्गल चाहो, तो शीघ्र ही इस दुष्ट मतको क्र शक ईसाकी दूसरी मूर्ति नहीं पूजते। । छोड़ो। किन्तु नष्टोरियाने किसी बातसे महासभामें। भारतवर्ष भी बहु दिनसे नेष्टोरियान् देखा पदच्यत होते भी अपना मत न छोड़ा। इसलिये वे दक्षिणापथके मलबारमें सिरीयक ईसाई कहाते कनस्तान्तिनोपलके एक धर्माश्चममें चार वर्षतक वह हैं। त्रिवाड़में सिरीयक ईसायियों के सन्तान आज- कैद रहे थे। किन्तु उससे भी उनका विश्वास किसी कल 'नसरानी मापिल्ला' नामसे अभिहित हैं। इसके प्रकार न घटा। अतःपर वह मिशरको महामरु सम्बन्ध में कुछ मतभेद है-किस समय भारतमें सर्व- भूमिमें निर्वासित किये गये। प्रथम ईसाई पाये। किसी-किसी मतसे ईसा मसीहके नष्टोरियाके मत मानने वाले व्यक्तिको हो नेष्टो- अन्यतम शिष्य सेण्ट टोमस अरब, ईरान् आदि स्थानों में रियान ( Nestorian ) कहते हैं। आजकल नष्टो- धर्मप्रचार कर १५ ई०को भारत पहचे थे। उन्होंसे रियान् एक पृथक् समाज समझा जाता है। इफे- यहां सिरीयक ईसायियोंकी उत्पत्ति है। सासको सभासे पदच्यत होने पर भी नेटोरियाका मत | दाक्षिणात्यके 'नसरानी मापिल्लों और नीच जातीय आसीरिया, पारस्य प्रभृति नाना स्थानों में बढ़ गया ईसायियों में अनेक सेण्ट टोमसको धर्मपिता एवं था। अल्प दिनमें रोमके शासनाधीन सकल स्थानोंसे खास ईसा मसीह समझते हैं। बहुतसे लोगों को उठ जाते भी ईरान, अरब, भारतवर्ष प्रभृति नाना विश्वास है-६८ ई० को २१ वौं दिसम्बरको सेण्ट स्थानमें नेटोरियान् समाज स्थापित हुआ। सिरोय टोमस हो मन्द्राजके पाचवर्ती माइलापुर नामक भाषामें लिखित एक शिल्पलिपि द्वारा मालूम पड़ा स्थानमें ब्राह्मणों को उत्तेजनासे हिन्दू अधिवासोकट क है, ई०के ७वे शताब्दमें नष्टोरियान् ईसाई चीन निहत हुये थे। कोई कोई कहता है-पारस्यवासी राज्यमें धर्मप्रचार करने गये थे। तुर्कस्थानमें खलीफ़ावों मनिके शिष्य टोमस-मनिकौयने ( Thomas the और मध्य एसियामें मुग़ल-बादशाहोंने नष्टोरियानोंको Manichean ) ई०के रे शताब्दमें भारत पहुंच आश्रय दिया। प्रसिह चङ्गेज़ खान्को पनी एक अभिनव ईसाई धर्म चलाया था। दाक्षिणात्यवासी नष्टोरियान-कन्या थीं। सुनते हैं-मध्य एसियासे! टोमस उन्हीं के शिष्य हैं। Vol III. 35.
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