पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१४७

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ईसाई १४६ रमणीने अन्यायरूप निर्यातन उठाया है। एक पूर्णगर्भा | और सलाईका ढेर लगा था। विषम समस्या ! डाकर युवती ज्वलन्त- अनल में डाल दी गयी थी। अग्निमें महाशयका दमाग चकरा गया। सभी पवाक! फिर उनका गर्भ फटनेसे एक नरकुमार निकल पड़ा। एक डाकर अनुमति लेने गये। किन्तु इङ्गलेण्डमें अनुमति निकटस्थ व्यक्तिने अग्निसे उस सद्योजात शिशुको उठा मिलने के पीछे ही रानी मरों। इसप्रकार आयर्लण्डके लिया, किन्तु निर्दय मजिष्ट्रेटने सद्योजात शिशुको फिर प्रोटेष्टाण्टोंने अव्याहति पायी थी। ज्वलन्त अग्निमें जलानका आदेश दिया था। इस प्रोटेष्टाण्ट कहनेसे प्रधानत: लूथरके मतावलम्बी तरह गर्भस्थ शिशुतक धर्मकुहकमें भस्मीभूत हुआ। समझ पड़ते हैं सही, किन्तु सकल स्थानके प्रोटेष्टाण्ट अहो। मानवको प्रकृति कैसी जघन्य है।" बस ! | उनका मत नहीं मानते। जेनिवा नगरमें कलबिन उस समय पोपके विरुद्ध जो बोल देता, अनिवार्य नामक एक विख्यात ईसाई अध्यापकने पोपके विरुद्ध मृत्यको वही मोल लेता। जो मत चलाया; खिजरलेण्ड, फान्स, स्कटलेण्ड - १५५८ ई०को पोपभक्त इङ्गलेण्डेश्वरीने काण्टर-1 प्रभृति स्थानके अनेक पोटेष्टागटोन उसीको अपनाया बरीके प्रधान धर्माचार्य ( Archbishop of Canter था। उन्हें कलबिन नामसे भी पुकारते हैं। १५६. bury )को संस्कारका पक्षपाती समझ मरवा डाला। ई० को इस मतके माननेवाले लोग फान्समें बढ़े। फान्स उन्होंने इङ्गलेण्ड की तरह वायरलेण्ड के प्रोटेष्टाण्टको देशके रोमन काथोलिक विद्रूप बनाकर उन्हें इगोनट दबाने के लिये भी डाकर कोलको पहुंचाया, किन्तु (Huguenot) कहते थे। इसीसे उनका नाम हगोनट भगवान् ने उन्हें अद्भुत उपायसे बचाया था । रानौका पड़ गया। स्कटलेण्ड के कलबिनो ईसाइयोंने भी रानी मुहर लगा आज्ञापत्र ले यात्राकालमें नगरपाल डाकर-! मेरीके उत्पातसे जो कष्ट पाया, उसे बिलकुल लिख से मिलने गये। बात करते करते डाकरने अपना छोटा कर किसने देखाया था। १५६१ ई०को इङ्गलेण्डेश्वरी खरोता देखाकर कहा था, 'इसमें आदेशपत्र रखा एलिजाबेथने अंगरेजी फौज भेज पोपभक्त ईसाइयोंके है। उससे आयलेंण्डके (प्रोटेष्टाण्ट नामक) विधर्मी अत्याचारसे प्रोटेष्टापटोंको छुड़ा दिया। मारे जायेंगे।' इस बातको एक प्रोटेष्टाण्ट रमणीने ___उस समय इङ्गलेण्ड, स्कट लेण्ड, आयर्लेण्ड, देन- सुन लिया। उसके भ्राता पायर्लेण्डमें ही रहे। जब मार्क, स्विडेन, स्विजरलेण्ड, जर्मनी और रोमराज्यके नगरपाल यथारीति पालापके पीछे चले, तब डाकर किसो किसी स्थानमें समाजका संस्कार हुआ सही, भी उनको सम्मानरक्षाके लिये अपने मकान से नीचे किन्तु फान्समें बड़ा गड़बड़ पड़ा था। इसको इयत्ता उतरे थे। किन्तु जिस खरीतमें आज्ञापत्र रहा, वह नहीं-फान्सोसी राजगणके उत्पीड़नसे कितने ऊपरवाले कमरे में छूट गया। डाकर बापस आ | धर्मात्मा प्रोटेष्टाण्ट मरे। शेषमें १५७२ ई०के अगस्त खरोता उठा चले थे। १५५८ ई के अक्तोबर मासकी मासको २४वौं तारीख आयो । ईसाई जगत्का ७वौं तारीखको डबलिन नगरमें वे जा पहुंचे। कैसा भयानक दुर्दिन था ! भारतके समग्र सिपाही- प्रधान प्रधान राजकर्मचारी उन्हें अभ्यर्थनापूर्वक दुर्ग में विद्रोहका इतिहास पढ़कर भी ईसाइयोंका जो हृदय ले गये। वहां राज्यके सब बड़े आदमी उपस्थित न डिगेगा, वह इस सकल दिनके वृत्तान्तको सुनते ही रहे। डाकरने उच्चैःस्वरसे वक्तता दे अपने पानेका थर थर कांप उठेगा। एक दिनके इतिहाससे हो कारण कहा और रानीको अनुमतिका पत्र सबको यह अति स्पष्ट खिंचा-मानव कैसा पिशाच, धर्मो- देखाया। उन्होंने रानौके सहकारी प्रतिनिधिको म्माद और भयङ्कर, जगतमें साम्प्रदायिक पक्षपात खरीता दिया था। प्रतिनिधिने अपने कार्याध्यक्षसे कैसा अनिष्टकर होता है। पाश्चात्य सभ्यजगत्के रानीका पनुमतिपत्र निकाल पढ़नको कहा। खरीता आदर्श फान्सको राजधानीमें एक ही दिन सत्तर खुला ; किन्तु उसमें रानोका वह पत्र न निकला, ताश ! हजार प्रोटेष्टाण्ट ईसाई प्रति निष्ठुर अत्याचारसे मारे