पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१४९

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ईसाई-इंहित स्थानों में लूथरका मत चला। अनेक नौचजातिको ईह-भादि• आत्म० अक० सेट् धातु। यह चेष्टा और उन्होंने ईसाई धर्मकी दीक्षा दे दी। किन्तु हिन्दुस्थानमें | यत्न अर्थमें आता है । सपूर्वक रहनेसे ईह सकर्मक है। ईसाई धर्मका आदर बढ़ा न था। क्योंकि नवाबोंके | ईह (सं० वि०) सञ्चारक, कोशिशकरनेवाला। भयसे ईसाई पास न फटके। राज्य कम्पनीके हाथ | (पु.) २ चेष्टा, तदबीर। जाते भी पहले कोई ईसाईधर्म-प्रचारक इस देश में | ईग (हिं. पु०) इच्छानुसार चलनेवाला, कवि,. घसने पाया न था। राजत्वका नियम रहा-कोई शायर। युरोपीय कम्पनीके अधिकारमें धर्मप्रचार कर न ईहमान (सं० त्रि०) चेष्टित, तदबीर लड़ानेवाला। सकेगा! क्योंकि उससे देशीयगणके धर्मपर आघात | ईहा (स. स्त्री०) ईह भावे प्रा-टाए। १ उद्यम, पड़ेगा और सकल अधिवासीके बिगड़नेसे राज्य में | कारबार। २ वाञ्छा, ख़ाहिश। ३ चेष्टा, तदबीर। विस्तर उत्पात उठेगा। __"कया जायते काम हयार्थो विवधते।” (रामायण) १८१३ ई०को अंगरेज सरकार ईसाई धर्मप्रचारक ईहात: (सं० अव्य०) परिश्रमपूर्वक, जोरसे। पर सदय हुई। मिसनरियोंको हिन्दुस्थानमें धर्म- ईहामृग (सं० पु.) १ कोक, भेड़िया। पर्यायमें प्रचारकरनेका अधिकार मिल गया। उनके अध्य- इसे कोक,क, अरण्यखा भार वनकुक्कर भी कहते हैं। वसायसे पल्प दिन में ही नीच श्रेणीके अनेक हिन्द ईहामृगको आकति बिलकुल कुत्ते-जैसी होतीहै। वर्ण स्थानियोंने ईसाई धर्म पकड़ा। शेषको ईसाई पोत और नौल अर्थात् पिङ्गल रहता है। यह महिला शिक्षा पोछे अनेक सम्भ्रान्त व्यक्तिके धरमें | हरिण प्रभृतिको मार सकता है। २रूपक नाटक घुस ईसाई पालोक डालने लगौं। अनेक हिन्दु विशेष। मृगकी भांति नायकके नायिकाको ढ़ढ़ स्थानियोंने अपनी प्रवत जातीयता खो दी। धीरे-धीरे लेनेसे यह नाम पड़ा है। ईहामृग नाटक चार अकसे उच्च शिक्षाका स्रोत फूटा। बालफोर साहबने लिखा विशिष्ट होता है। इसमें प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध उभय है-इस उच्च शिक्षाको पाकर फिर कोई ईसाई होना | इतिवृत्त देखाये जाते हैं। ईहामृगमें मनुष्य अथवा नहीं चाहता। ईसाई भाव रखते भी बहुतसे लोग देवता नायक और प्रतिनायक दोनो हो सकते हैं। धर्ममें नास्तिक रहते हैं। नायक गूढभावसे नायिकाको ढंढ़ता है। नायकको १७६४ ई०को बंगला मुद्रायन्त्रके प्रवर्तक केरौ मनुष्य और नायिकाको देवता समझते हैं। नायक साहब इस देश में धर्मप्रचार करने पाये थे। उन्होंने उद्दत गुणयुक्त पौर नायिका क्रभाव सयुक्त रहती असाधारण अध्यवसाय एवं सहिष्णुताके गुणसे अनेक है। वलात्कार वा छलना द्वारा भी नायिकासंग्रह विपद पापद सह और सुन्दरवनमें रह असभ्यलोगोंको लगता है। थोड़ा बहुत शृङ्गाररस होना आवश्यक है। गुप्त भावसे दीक्षा दी। किन्तु प्रकाश्य भावसे कम्पनीके | प्रतिनायकको जो क्रोध उपजता, उसे किसी कार्य- राज्य में उन्हें प्राथय न मिला था। शेषको हलेण्ड- छलसे निवृत्त करता है। महात्माका वध वर्णनीय है। वासिगणके अधिकृत श्रीरामपुरमें ठिकाना लगा। एक अङ्कमें देवविषय रहता है। दिव्यहेतु युद्ध वर्णन श्रीरामपरमें ही मार्समान और वार्ड नामक दो करते हैं। सिवा इसके अन्य दो नायक भी रहते हैं। विख्यात पण्डित भारतको नाना भाषाओं के जाननेवाले ईहार्थिन् (सं• त्रि.) किसी वस्तुको चेष्टा रखने- केरौ साहबसे मिल गये। इसी स्थानपर उक्त बापटिष्ट वाला, जो दौलत ढूंढ़ता हो। प्रोटेष्टाण्टोके उत्साहसे प्रथम बंगला मुद्रायन्त्र जमा| ईहाद्वंक, हामृग देखो। था। १८०० ई०के मार्च मासको १८वौं तारीखको ईहित (सं० त्रि.) ईह-त । १ चेष्टित, कोशिश वार्ड साहबने अपने हाथसे प्रथम बंगला अक्षर किया गया। २ अपेक्षित, चाहा गया। (लो०), संवार। मुद्रायन्त्र, ईसा और पायात्य दर्शन देखो। । ३ उद्योग, तदबीर। ४ चरित, चाल। . .