उ-(इस्व उकार )-१ स्वरके मध्य पञ्चमवर्ण। ' (हिं. अव्य० ) १ क्या ! क्यों ! २ नहीं ! ३ अरे । इसके उच्चारणका स्थान ओष्ठ है। ओष्ठनाबुपु। (शिक्षा) कारणवश मुख न खुलनेपर वह अव्यय आता है। ह्रस्व स्वरों में उकार तीसरा है। इस्ख, दीर्घ, प्लुत, उदात्त. उकन (हि.) उकुष्य देखो। अनुदात्त और स्वरित् भेदमे यह नौ प्रकारका होता उकौत (हिं. पु०) रोग विशेष, एक बीमारी । है। फिर प्रत्येक अनुनासिक और अननुनासिक रह-! इसमें प्रायः वर्षाकालपर पदको अङ्गुलि पिडिका पड़ने- नेसे इसके अट्ठारह भेद होते हैं। यह स्वयं कुण्ड- से सड़ने लगती हैं। लनी है। उकारका वर्ण चम्प के फल-जैसा होता उ'खारी (हिं० स्त्री०) इक्षुक्षेत्र, अखका खेत। है। इसमें पञ्चदेव और पञ्चप्राण रहते हैं। उकार उगनी (हिं. स्त्री०) गाड़ी ओंगनेका काम, पहि- चतुर्वर्गका फल देनेवाला है। (कामधेनुतन्त्र ) एमें तेलको दिवाई । इससे पहिया खुब घमता है और ____ लिखने का नियम-ऊर्ध्व, अधः और मध्यस्थानमें वाम- बलोंको गाडी खोचने में ज्यादा जोर नहीं लगाना दिगगामी तीन ऋजुरेखा खींचनेसे यह बनता है। इन पड़ता। उगनी न होनेसे पहिया बिगड़ जाता है। रेखावों में अग्नि, वायु और इन्द्र रहते हैं। मात्रामें गाडीवान जोतनसे पहले उंगनी कर लिया करते हैं। शक्तिका वास है। (वर्णोद्धारतन्त्र ) माटकान्याससे इसका इसमें प्रायः रेडीका तेल लगता है। स्थान दक्षिण कर्ण पड़ता है। उकारको शङ्कार,वतलाक्षी, उगलाई (हिं. स्त्री० ) अङ्गलि नियोजन, उंगली मूत, कल्याण, अमरेश, दक्षकर्ण, षड़ वक्त्र, मोहन, चलानेका काम । शिव, उग्र, प्रभु, धृति, विष्णु, विश्वकर्मा, महेश्वर, गलाना (हिं. क्रि०) अङ्गलि चलाना, उंगली शत्रघ्न, चटिका, पुष्टि, पञ्चमी, वह्निवासिनी, कामघ्न, करना, उगलीसे इशारा लगाना । कामना, ईश, मोहिनी, विघ्नहत्, मही, उढसू, उंगली (हिं० ) अङ्ग लि, अङ्गश्त । अनलि देखो। कुटिला, श्रोत्र, पारदीपो, वृष और हर भी कहते हैं। २ भ्वादि० आत्म० अक० अनिट् धातु। यह “पांचो उगलियां वरावर नहीं।” (लोकोक्ति) शब्द करनेके प्रथमें पाता है। (अव्य) उक्विप तर्जनौको कलमको उंगली, मध्यमाको डाइन, तुगभावः। ३ है! ए। सुनिये! ४ कोपप्रकाश !! अनामिकाको पूजाउंगली और कनिष्ठाको कानको देखेंगे! ५ अनुकम्पा ! रहम! बचावो! नियोग, उंगली. घुगलिया या चिठली उंगली कहते हैं। राय ! कहिये ! ७ पदपूरण ! जुमलेका पुराव! उगलोकी नोक (हिं॰ स्त्री०) अङ्ग लिको शिखा, ८ कोपयुक्ता कथा! गुस्म की बात ! ८ अङ्गीकार ! अङ्गश्तका छोर। मध्न गै! हां! ठीक ! १० प्रश्न! सवाल ! क्या! उधाई (हिं० स्त्री०) निद्रा, सुस्ती, झपको। . क्यों! ११ वितर्क ! बहस! १२ विमश, अफसोस! उंचन (हिं. पु.) १ उदच्चन, अपरी खिंचाव । हाय ! १३ विकल्प, शक! शायद ! १४ सम्भावना ! २ अदवान। यह रस्मो - खाटमें नीचेको पोर रिक्त इमकान! हो सकता है ! "स्त्रियः सतीस्तां उ मे पुस पाडः।" स्थानमें लगती है और बुनावटको. पायतानेसे मिला. (ऋक् १।१६४।१६). “उमेति मावा तपसो. निषिद्धा।" ( कुमार.) खौंच देती है। इससे खाटका ढीलापन निकल .(पु.) अत्-डु। १५ शिव । १६.वाम। १७ ब्रह्मा। । जाता है। Vol. III. 38
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