पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१५७

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उग्रजाति-उग्रपुत्र उग्रजाति ( सं० वि० ) नौचवंशसम्भूत, कमीने | पड़ी है। छातीपर सीपका हार लिपटा है। चक्ष खान्दानसे चैदा। उग्र देखो। रता जैसे लाल हैं। उग्रतारा कृष्णवर्ण वस्त्र पहने हैं। उग्रजित् (वै० स्त्री०) एक अप्सरा । ( पर्व ६।११८१) कटिदेशमें व्याघ्रचर्म भूषित है। वामपद शवको उग्रता ( स० स्त्री०) उग्रस्य भावः कर्म वा तल् । छाती और दक्षिण पद सिंहको पीठपर रखा है। १ उग्रभाव, सख्ती, तेजी। २ उग्रकर्म, कड़ा काम । ये देवी स्वयं शवके शरीरको चाटती हैं। . ३ कटुता, कड़वापन। ४ अलङ्कार शास्त्रका कहा उग्रतेजस् (सं० वि०) १ उत्कट शक्तिशाली, खूखार हुआ व्यभिचारी गुणविशेष। अपराधादिके कारण ताकृत रखनेवाला। चित्तमें रूखापन पानेको उग्रता कहते हैं। यह | उग्रतेजा (सं० पु०) १ नागविशेष। २ किसी उग्रता धर्म, शिर:कम्पन, तर्जन, ताड़ना प्रभृति द्वारा बुद्धका नाम। ३ एक देवता। झलकती है। यथा,-. उग्रदंष्ट्र (सं० त्रि०) उत्कट दन्तयुक्त, तीखे दांतों- “शौर्यापराधादिभवः मवेञ्च त्वमुखता। वाला। तब बैदशिरःकम्पः तजनाताडनादयः ।" उग्रदण्ड (सं० त्रि०) १ उत्कट दण्डधारी, मोटा ( साहित्यदर्पण ३ परिच्छेद) सोटा बांधनेवाला। २ निर्दय, बेरहम, कड़ी सजा उग्रतारा (सं० स्त्री०) उग्र-ट-णिच्-अच-टाप । भग देनेवाला। वतीको एक मूर्ति। ये उग्र भयसे भक्तोंको वाण उग्रदर्शन (सं० त्रि.) भयानक, खौफनाक, जिसे देती हैं। उत्पत्तिको कथा इस प्रकार है- देखते डर लगे। किसी समय शुम्भ और निशुम्भ देवके यनका भाग उग्रदुहिट (सं० स्त्री० ) उत्कट पुरुषको कन्या, चुरा स्वयं दिक्पाल बन गये थे। इस पर समस्त खूखार आदमौकी बेटी। देवता इन्द्रके साथ इकट्ठे हो हिमालय पहुंचे। वहां उग्रधन्वन् (सं० पु० ) उग्रं धनुर्यस्य, अनङ् समा० । सबने गङ्गावतारके निकट ठहर महामाया भगवतीका शिव। २ इन्द्र। ३ मगधराज नन्दके कनिष्ठ पुत्र । स्तव किया । भगवती देवोंके स्तवसे सन्तुष्ट हुई शकटाल द्वारा ये मगधके राजा हुये। चन्द्रगुप्तने नेपाल- और मतङ्गका स्त्री रूप बना पूछने लगों,-देव! राज पर्वतेश्वरके साहाय्यसे उग्रधन्वाके राज्य छीनने को तुम इस स्थान पर किस स्त्रीको स्तव सुनाते चेष्टा की थी। उससे इन्होंने क्रद्ध हो चन्द्रगुप्तके और इस मतङ्गके आश्रमपर क्यों आते हो? ऐसे भातृगणको मार डाला। पीछे पर्वतेखरसे लड़ते उग्र- कहते ही समय उनके शरीरकोषसे एक देवी निकल धन्वाने प्राण छोड़ा। (व त्रि०) ४ असह्य धनु- कर बोलौं,-'ये देव हमारा ही स्तव करते हैं। शुम्भ विशिष्ट, कड़ी कमान वाला, जिसके धनुसको मार और निशम्भ नामक दो दानव इन्हें बाधा देते हैं। दुश्मन सह न सके। इसीसे देव उनके वध निमित्त यहां पाये हैं।' शरीरसे - “वाहु संध्यं ग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता।" (ऋक् १०॥१०॥३) इन देवीके निकलने बाद ही हिमालयमें रहनेवाली उग्रनासिक ( सं त्रि०) दीर्घनासिक, नक्क, बड़ी वह मौरवर्णा मातङ्गी अतिशय कृष्णावर्णा बन नाकवाला। गयौं। ऋषि इन्हींको उग्रतारा कहते हैं। यह उग्रपत्रक (सं० पु.) महानीला, काला भौंरा। मूर्ति चतुर्भुजा, कृष्णवणा और मुण्डमालाधारिणी। उग्रपुत्र (सं० पु०) उग्रस्य शूरस्य पुनः। १शूरका है। दक्षिणके ऊपरी हस्तमें खड़ग तथा नीचेके पुत्र, बहादुर का लड़का। उगपुवः शूरान्वयः।” ( शतपथ- हस्तमें चामर और वामके ऊपरी हस्तमें करपा- ब्राह्मणभाष्य १४६५२) २ शिवके पुत्र कार्तिकेय। ३ गभीर लिका तथा नोचेके हस्तमें खपर है। मस्तक पर जलाशय, गहरा तालाब। “पा उगपुवे जिघांसत।" (ऋक् पाकामभेदी एक जटा लगी और गले में मुण्डमाला ११११) 'उगपुवे उगाः उदुगूर्णा पुवा यस्मिन् तस्मिनुदके' ( सायच्य)