पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१६०

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उचथ्य-उच्च १५८ उचथ्य (व.वि.) १ प्रशंसनीय, तारीफके काबिल वाला, जो उधार लाता हो। (पु.)२ऋणी वा उत्त- (पु.) २ अङ्गिराका एक नाम। (ऋक् ८४६२८) मर्ण, कर्जदार या कज दिहन्दा, देनदार या लेनदार। उचना (हिं.क्रि.) १ उच्च पड़ना, ऊंचा जाना, उचापती लेखा (हिं. पु.) २ आपणपत्र, दुकानका जपरको उठना। २ उच्च करना, ऊपरको उठाना। परचा, चलता हिसाब उचनि (हिं स्त्री०) उच्च होनेकौ दशा, उठान, उचायी, उचाई देखो। उभार, उचकाई। उचार (हिं०) उच्चार देखो उचरंग (हिं० पु.) पतङ्ग, परवाना, कपड़े का उचारक (हिं.) उच्चारक देखो। कोड़ा। उचारन (हिं.) उच्चारण देखो। उचरना (हिं० क्रि०) १ उच्चारण करना, जबानसे उचारना (हिं. क्रि०) १ उच्चारण करना, कहमा । निकालना, बोलना। २ शब्द आना; आवाज़ देना, २ उच्चाटन करना, उखाड़ देना। मुहसे निकलना। ३ उचड़ना, छटना । उचाल, उचाट देखो। उचरवाना, उचराना देखो। उचालना, उचाटना देखो। उचराई (हिं॰ स्त्री०) १ उच्चारण करनेको दशा, उचावा (हिं. पु० ) स्वप्नप्रलाप, ख वाबको बकझक । कहाई। २ उचड़ाई। उचित (सं०वि०) १योग्य, कर्तव्य, वाजिब, कर- उचराना (हिं• क्रि०) १ उच्चारण कराना, कहलाना। नेके काबिल। २ परिचित, अभ्यस्त, जाना-बूझा, जो २ उचड़वाना। समझ में आ गया हो। ३ सुखमय, खुशगवार, अच्छा उचलना, उचरना देखो। लगनेवाला। ४ साधारण, मामूली। ५ मान्य, उचाट (हिं० वि०) पृथक् किया हुआ, जो टूट मानने लायक । ६ निक्षिप्त, न्यस्त, रखा हुआ। गया हो। २ विरता, नाखुश, नाराज। ३ श्रान्त, ७ व्यवस्थित, दुरुस्त, ठीक । यकामांदा । ४ खिन्न, बेचैन। ५ हताश, दिलगीर। उचेड़ना, उचाटना देखो।। (स्त्रो०) ६ घणा, नफरत, अलग होनेको सखू त उचेलना, उचाटना देखो। खाहिश। उचौंहा (हिं० वि०) उठा हुआ, उभरा हुआ, जो उचाटन (हिं०) उच्चाटन देखो। ऊंचा पड़ गया हो। उचाटना (हिं.क्रि.) उच्चाटन करना, उठा देना, उच्च (सं० त्रि.) उच्चिनोतीति, उत्-चि-ड टिलोपः । भगाना। १ उन्नत, बुलन्द, ऊंचा। २ तुङ्ग, लम्बा। ३ गभीर, उचाटी (हिं. स्त्री० ) उच्चाटन, उचाट, हटाव।। गहरा। ४ महास्वन, पुरुशोर, जोरसे बोला जाने- उचाट (हिं.वि.) उच्चाटन करनेवाला, जो हटा वाला। ५ प्रचण्ड, शदीद, तुन्द। ६ अंश, भाग, देता हो। हिस्सा। (पु.)राशिभेद, सैयारेके दायरेकी नोक । उचाइ, उचाट देखो। "मेषो वृषो मृग: कन्या कर्कमौनतुलाधराः । उचाड़ना, उचठाना देखो। भास्करादर्भवन्ता क्षा राशयः क्रमशस्विमे ॥ उचाना (हिं० क्रि०) उच्च करना, उठा देना। खोचाच सप्तमं नीचं प्राग्वदभागैवि निर्दिशेत् । उचापत (हिं. स्त्री० ) १ विश्वास, एतबार, उच्चान्तः सच्चसंज्ञः स्थात् नोचान्ते तु सुनोचकः ॥" (ज्योतिस्तत्त्व ) मानता। “वनियेको उचापत और घोड़े को दौड वरावर ।"(लोकोक्ति) ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मेषका सूर्य, वषका चन्द्र, २ प्रतारणा, फरेब, धोकाधड़ी। ३ विश्वास पर मृगका मङ्गल, कन्याका बुध, ककटका वृहस्पति, मोनका पानेवाली चीज।. . .. .... शुक्र और तुलाका शनि उच्च होता है। अपने उच्च- उचापती (हि. वि.) १उचापतसे सम्बन्ध रखने स्थानसे सप्तम पहुंचने पर प्रत्येक ग्रह नीचे निकलता