पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१६० उच्चकैः--उच्चय है। अर्थात् तुलाका सूर्य, वृश्चिकका चन्द्र, कर्कटका | उच्चटाफल (सं० ली.) रक्तगुजा, लाल धची। मङ्गल, मौनका बुध, मकरका वृहस्पति, कन्याका शुक्र | उच्चटामूल (सं० लो०) चिञ्चोटक मूल, चचेंड़ेको जड़ । और मेषका शनि नीच है। ८नारिकेलवृक्ष, नारि- उच्चण्ड (सं० त्रि.) उत्-चड-अच। १ वरान्वित.. यलका पेड़। सरल देवदारु।. जल्दबाज, फुरतीला। २ तोब, तुन्दख, झला। उच्चकैः (सं. अव्य) उस-प्रकच् । अतिशय उच्च, उच्चतम (सं.वि.) अत्यन्त उव्रत, निहायत ऊंचा। उब्रस, निहायत बुलन्द। (माघ ०१२) (पु०) सप्तक विशेष। सङ्गीतमें यह तारसे भी ज'चा उच्चक्षु (सं० त्रि०) उत्क्षिप्तमुत्पाटि वा चक्षुर्यस्य, पड़ता और केवल बजाने में लगता है। प्रादि. बहुव्री। अपरकी ओरको चक्षु रखने- उच्चतर (सं०त्रि०) अपेक्षाकृत उन्नत, ज्यादा ऊंचा। वाला, जो प्रांख उठाये हो। उच्चतर (सं० पु.) उच्च उव्रतस्तरुः। १ नारिकेल उच्चध्वज (स.ली.) हृदयमें रहने और मुखपर | वृक्ष, नारियलका पेड़। २ वट वृक्ष, बरगद का पेड़ । न पानेवाला हास्य, चन्दरूनी कहकहा, जो हंसी उच्चता (नं० स्त्रो०) उवतावस्था, उचाई। चेहरेसे नहीं-दिलसे निकलती हो। उच्चताल (सं० लो०) भोजके समयका नृत्य एवं गीत, उच्चङ्गम (सं० पु.) उच्चगामी पक्षो, विहङ्ग, जो | ज्याफत में होनेवाला नाच और गाना। चिडिया ऊंचे उड़ सकती हो। (दिव्यावदान) उच्चत्त्व (सं० लो०) उच्चता देखो। उच्चट (सं० पु०) वङ्ग, सोस। उच्चदेव (सं० पु.) उच्चः प्रधानो देवः । विष्णु, प्रधान उच्चटन (सं० क्लो०) उन्मूलन, बरबादी, उजाड़। देव श्रीकृष्ण। २ पलायन, दौड, मन्त्र द्वारा किसी व्यक्तिको उसकी। उच्चदेवता (सं० स्त्री०) काल, यमराज। वृत्तिसे भगा देनेका काम । | उच्चध्वज ( सं० क्ली० ) तूषित नामक वर्गस्थ उच्चटनीय (सं० वि०) भगाया जानेवाला, जो बुद्धका नाम । निकाल देनेके लायक हो। | उच्चनीच (सं० वि०) १ उत्कृष्ट निकृष्ट, उन्नत-श्रव- उच्चटा (सं० स्त्री०) उत्-चट्-अच-टा। १ गुना, नत, भला-बुरा, ऊंचा नोचा। “दृष्टारमुञ्चनीचानां कर्मभि धुंधची। २ भूम्यामलको, भुधि प्रांवला। ३ एक | हिनां गतिम् ।” (भारत अश्वमेध) (पु०) २ ग्रहगणका उच्च प्रकार लशन, किसी किस्म का लहसन। ४ नागर-| और नौच स्थान। ३ स्वरके आघातका परिवर्तन, मुस्ता, नागरमोथा। ५ रक्त गुञ्जा, लाल धुंधची। आवाजका उतार-चढ़ाव । ६ढण विशेष, एक घास (Cyperus Compressus)। | उच्चन्द्र (सं० पु.) उत् खल्प अवशिष्टश्चन्द्रो यत्र,. , इसे निर्विषी, चुडाला, चक्रला, अम्ब पत्रा, जटिला, प्रादि. बहुव्री। निशाका चतुर्थ प्रहर, राविशेष, शुक्रजा और उत्तानक भी कहते हैं। वैद्यकके मतसे | रातका आखिरी वक्त । रात्रिको जब चन्द्र डबने उच्चटा स्निग्ध, शीतल, कषाय और अम्ल होती है। लगता, तब यह समय पड़ता है। इससे पित्त, प्रमेह, दाह, तृष्णा, मूत्रक्वच्छ, मूत्राघात, उच्चपद (सं० लो०) सम्मानका पद, उबसावस्था, उन्माद, अपस्मार, रतापित्त और वातरताको व्यथा ऊंचा दरंजा। मिट जाती है। उच्चटा छोटे नागपुर, आसाम, लख- उच्चभाषण (सं० लो०) उव्रत कथन, बुलन्द बात,. नऊ और सिंहसके ग्रीष्मप्रधान स्थानोंमें उपजती है। ऊंचा बोल। ७ दम्भ, ग़रूर, घमण्ड। ८ चर्चा, तजकिरा, बातचीत। उच्चभाषिन् (सं. त्रि.) उच्चः खरसे बोलनेवाला, स्वभाव, पादत।. जो जोरसे बात करता हो। उच्चटापत्र ( पु.) क्षुद्र तालीशपत्र, छोटे पनिहा | उच्चय (सं० पु.) उत्-चि-अच्। १ चयन, इकट्ठा पांवखेका पत्ता। (को०) २ चिचोटक पत्र। | करनेका काम। २ परिधान-वस्त्र-प्रन्वि, पहननेके