पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१६९

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१६८ उलिया-उछालना कोई यात्रीका रूप बनाता है। फिर मन्त्रपाठ करते । और अलक रखते हैं। दाढ़ीसे सबको घृणा है।' करते वह यात्रियोंके अलङ्कारादिपर दृष्टि रखते और तेलगु और मरहठी मिली बोली चलती है। यह अवसर पाकर भीगा वस्त्र सुखानेको फैला देते हैं। सूवर पालते हैं, गोहत्या कभी नहीं करते। विवाहके दृष्टि बचा भामते अलङ्कारादिको अण्टोसे दवा समय मालपूवा पकता है। उछलिये सेंध फोड़ने या रेतमें कुछ दूर पर गाड़ आते हैं। साथी इधर-उधर डाका डालनेसे दूर रहते हैं। क्योंकि ऐसा काम घम टहल जाते हैं। यानीके रोनेधोने पर वह | करनेसे ये जातिसे निकाल दिये जाते हैं। प्रात:- सहानुभूति देखाते हैं। फिर कहने लगते कालसे सन्ध्यातक धोकेधड़ीमें माल मारना ही इनका . 'हमने चोरोंको उधर घमते देखा है। आप को प्रधान उद्देश्य है। उलिये अपने मुखिये पटेलसे अन्वेषण करना चाहिये। लोगोंके उधर जाते पूछ माल मारने जाते और लौटकर रुपयेमें दो आने हो भामता अलङ्कारादि उखाड़ कर चम्पत होता है। उसकी भेंट चढ़ाते हैं। चुगली करनेसे पञ्चायत कठोर ऐसे मेलों में प्रायः स्त्रियां अपने अलङ्कार गठरीमें बांध दण्ड देतो है। कर रख देती और उसीके पास बैठ भोजन करती हैं। पुरुष और स्त्री दोनो अलग या मिल-जुलकर उस समय दो भामते उनके पास पहुंच जाते हैं। माल मारते ; किन्तु किसीको सब चीज नहीं चुराते, एक स्त्रियोंके निकट रहता और दूसरा थोड़ी दूरपर | एक ही आधसे सन्तुष्ट हो जाते हैं। विश्राम लेनको बैठता है। स्त्रियोंके दूसरी ओर सन्तान उत्पन्न होनेपर सट्बाई देवीको पूजते हैं। घूमते ही वह गठरी चोरा रेतमें गाड़ देता है। पकड़े चौल कर्ममें भोज देनेका विधान है। विवाहके समय जानपर भामतेके पास कुछ नहीं निकलता और वरका १०१२० और कन्याका वयस ६७ वत्सर रहता अदालतसे साफ़ छूट जाता है। है। वरपक्षसे कन्यापक्षको २००१२५० रुपया दिया 'पूना नगरमें उछलिये अथवा दक्षिणी भामते भरे जाता है। विवाह के समय रातभर गोंधले नाचते गाते पड़े हैं। नगरको चारो ओर प्रधानत: बादगांव, हैं। उछलिये विधवा विवाह और स्त्रीत्याग भी करते हैं। भाटगांव, करजा, फुगियाबाड़ी, पाबल, बोपुडी, । इनमें मृतक जलानकी प्रथा है। तीसरे दिन कनेरसर, कोंडवे, मुनढव. तलेगांव और धमारीमें | | श्मशानमें भोज होता है। १३वें दिन मुण्डन और इनका अड्डा है। कुछ सर्वदा पर्यटनपर रहते हैं। पिण्ड तथा वलिदान करते हैं। . 'इनके गायकवाड़ और जादव दो विभाग हैं। उछहरा (उचहरा) नागोड़ देखो। केवल नीच जातिके मांगी, मारों, चमारों, ढोड़ों, उछाटना (हिं.क्रि.) उच्चाटन करना, हटाना,भगाना। बरूदों और तेलियोंको छोड़ उछलिये सब हिन्दू छाड़ उछालय सब हिन्दू उछाड़, उछाल देखो। मुसलमान अङ्गीकार करते हैं। इससे कितने हो। उछार, उछाल देखो। ब्राह्मण, बनिये और सोनार उनमें जा मिले हैं। अन्य | उछाल (हिं० स्त्री०) १ प्लति, फलांग, कूद-फांद। जातिवालीको उलिया बननेके लिये २०१२५ रुपये २ सवेग निःसरण, जोरका निकास, उबाल । ३ आनन्द, देना पड़ता है। याचकके मुख में हरिद्रा तथा शर्करा ख.शी, उचंग । ४ उत्तेजना, गुस्सा, तड़प । ५ सम्भोग, डालनेसे ही संस्कार बन जाता है। फिर दो एक | चड्डी। ६ क , वमन, छांट। ७ फेंकफांक । ८ अप- बड़े बड़े उछलिये साधारण भोजमें बैठ उसके साथ मान, बेइज्जती। ८ युद्ध, लड़ाई। खाते-पीते हैं। बाजा बजता और अतर-पान बंटता है। उछाल छक्का (हिं. स्त्री०) विलासवसी स्त्री, फाहिशा, पूनाके उछलिये काले और तेलगु वा द्राविड़ जैसे | छिनाल। यह अपनी छाती देखाती है। होते हैं। कितना ही मारते-पीटते भी उनके चक्षुसे | उछालना हिं० क्रि०) १उतक्षेपण करना, फेंकना। ' अश्रु नहीं निकलता। पुरुष शिखा, श्मश्रु गण्डलोम' “सोना उछालते चले जावो।” (लोकोक्ति ) २ वमन या के