पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१६८

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उछंग-उछलिया उहंग (हिं०) उत्सङ्ग देख । । उछलकूद (हिं. स्त्री०) १ प्लतगति, क्रीड़ाकौतुक, उकना (हिं० क्रि०) विस्मित होना, उझकना, दौड़धूप, नाच-तमाशा, हंसी दिल्लगी। चौंकना, भौचक रह जाना। उछलना (हिं. क्रि०) १ वलित होना, फलांग उछटना, उचटना देखो। मारना, कूदना, फांदना, एक बारगी ही ऊपरको उछड़ ( उचाड़)-गुजरातमें दायमा राजपूतोंका एक उड़कर नीचे आ जाना। २ सवेग निःसरण करना, . राज्य। यह मैन नदीके परपार गोरोसे देक्षिण अवस्थित फूट निकलना, उबलना, जोरके साथ बाहर आना। और वौरपुर, रेगन, विक्रमपुर तथा उचाड़ चार प्रान्तमें ३ आनन्द करना, खु.श होना, उचंग लेना। विभक्त है। भूमिपरिमाण २६ वर्गमील है। १८वें "आये कनागत फ ला कांस। बामन उछले नौ नौ बांस।" ( लोकोक्ति ) ईके शताब्दारम्भ पर स्थानीय नृपति आगर और ४ क्रोधसे उत्तेजित होना, गुस्से में खखार बनना, राजपिपलौने वीरपुरके राजा बाजी दायमाको राज्यको तड़पना। ५ सम्भोग करना, चढ़ बैठना। श्रीवृद्धिमें बड़ा साहाय्य दिया था। इसकी भूमि उछलवाना, उछलाना देखो। को और नदी-नालेसे कटी फटी है। ज्वार उछलाना (हिं० क्रि०) उछालनेका कार्य कराना, बहुत उपजती, किन्तु कुछ-कुछ रुई, तेलहन और परन्तु कुछ-कुछ रूई, तेलहन और उछलवाना। नदी किनारे तम्बाकू को उपज भी हाथ लग जाती है। उछलिया-बम्बई प्रान्त को एक जाति। इस जातिके राजपिपली ग्राम पार्वत्य और वृक्षादिसे व्याप्त हैं। लोगोंको भामता या गांठचोर भी कहते हैं। पूनाके उनमें अल्प तथा कठोर फसल होती है। महुवा ख ब | उछलियोंका वौज तेलगुप्रान्तसे पाया समझ पड़ता है। आते हैं। क्षेत्रफल साढ़े १२ वर्गमील है। प्रति तेलगु बोलते और अपने नाम दक्षिणो वर्ष कोई दश हजार रुपयेको आमदनी आती है। या पूर्वी ढङ्गके रखते हैं । दक्षिणसे बरार, गुजरात और ३५६) रु. गायकवाड़को कर की भांति दिया जाता पश्चिम भारतमें उछलिये फैल पड़े हैं। इन्हें मालम है। रेगन उचाड़से पश्चिम अकेला ग्राम है। सामने | नहीं अपना घर कब छोड़ा था। कुछ लोग कहते, नर्मदा बहती है। अंशभागी तीन हैं। भूमिका | कि वह चार पांच पौढोसे पूनिके पासपास ग्राममें रहते परिमाण प्रायः ४ वर्गमौल है। वार्षिक आय ५०००० हैं। भामते कहाते भी पूने के उछलिये भामते नहीं। होता, जिससे ४६१) रु. गायकवाड़को करकी तरह क्योंकि प्रकृत भामते पूर्व अथवा दक्षिण-पूर्वसे नहीं- दिया जाता है। प्रभु प्रायः रिक्तहस्त ही रहते हैं। उत्तरसे आये थे। यह राजपूतांके सन्तान हैं। रूप स्थानीय भूमि, फसल और जाति उदाड़से मिलती सुन्दर और प्रसन्नतायुक्त रहता है। चर्म कोमल है। है। जमीन्दार साधारण कृषकसे अधिक क्षमता अङ्ग सुडौल और दृढ़ होते हैं। यह कितने ही रूप नहीं रखते। भूमि कुछ-कुछ हलको और काली बना लेते हैं। अपने ही ग्राममें कोई मारवाड़ी है। ज्वार और चावलको बहुत बोते हैं। भीलोंका बनिया, कोई गुजराती श्रावक वा जैन, कोई ब्राह्मण निवास अधिक है। उपरोक्त विभाग लग जानेसे और कोई राजपूतके वस्त्र पहनता है। यह किसी उचाड़की भूमिका परिमाण साढ़े ८ वर्गमील है। वेशमें वर्षों बने रहते और उस प्रकारके लोगोंको बारह ग्राम बसते हैं। वार्षिक आय ८०००) सैकड़ों कोस घूम ठगा करते हैं। कभी कभी यह रु. है। ८८३) रु. गायकवाड़को करस्वरूप देना अपना झूठा नाम धाम बता उसी जातिके व्यव- पड़ता है। अधिवासी कोल हैं। मोटो फसल उप सायोकी सेवा में लग जाते हैं। कुछ दिन विश्वासपूर्वक जती है। कार्य चला अवसर पाकर बहुत सा ट्रव्य उठा भागते उछड़ना, उछलना देखो। . . हैं। बड़े बड़े मेलोंमें दो-तीन भामते पहुंचते और उकरना, उछलना देखो। ............. | मानके घाटपर जा बैठते हैं। उनमें कोई ब्राह्मण