पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उज्जानक द्रव्य बहुत हैं। भूमि अतिशय उर्वरा है। इसी समतल भूमिपर उपत्यका और जलाशय है। यहां जगह पलो (विश्वम्भर ) राजाने अपने पुत्रको भिक्षा नानाप्रकार वीज पड़ता, किन्तु यथेष्ट शस्य नहीं उप- स्वरूप दे डाला था। फिर बोधिसत्त्वने निज देह जता। अङ्गर और गन्ना विस्तर होता हैं। भूमिसे व्याघ्रोको खानेके लिये सौंपा। राजा शाकान्नभोजी लौह और स्वर्ण निकलता है। क्षेत्र हलदी लगाने परम धार्मिक और सायं व प्रातः काल बुद्धदेवकी लिये अति प्रशस्त हैं। शीत ग्रोम समान रहता है। अर्चना करनेवाले हैं। पूजाके समय नौबत बजती वर्षा यथाकाल पड़ती है। अधिवासी मृदुभाषी, है। मध्याह्न कालमें वे राजकार्य देखते हैं। लाजुक और चतुर हैं। वे विद्यानुरागी होते भी स्थानीय लोग यथाकाल नदीमें वाण निको नहीं। कार्यतः विद्यासे अलग रहते हैं। सकल ही प्रायः रोकते। इससे भूमिको उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इन्द्रजाल सीखते हैं। अनेक व्यक्ति महायान सम्प्रदाय- सन्धनासमय सकल मठमें वाद्य बजने और श्रमण- मुक्त हैं। हीनयान सम्प्रदाय पांच प्रकारका है- वर्ग बुद्ध देवकी पूजा करने लगते हैं। उज्जानक पहुं सर्वास्तिवादी, धर्मगुप्त, महोशासक, काश्यपीय और चने पर बुद्धदेव प्रथम नागराज मठ गये थे। महासाविक । भाषा अधिकांश भारतवर्ष जैसी है। किन्तु नागराज उनसे कड हो पानी बरसाने लगे। लिखन-प्रणाली भी वैसा ही है। यहाँ ४५ प्रधान वृष्टिसे बुद्धको सङ्घाटो भौज गयी थी। पानी बन्द नगर हैं। राजा मङ्गलो नगरीमें रहते हैं। यह राजा होनेसे वे एक पत्थर पर बैठे। इसी जगह उन्होंने शाक्य-वंशीय हैं। स्थानीय सुवास्तु (स्वात) नदीके अपना कषाय वसन सुखाया था। वह शुष्क कषाय उभय तौरपर प्रायः १४०० सङ्घाराम बने हैं। मङ्गली- आज भी उस प्रस्तरके निकट पड़ा और बहु काल नगरीको चारो दिक् पसंख्य बौद्ध कोर्तियां देख पड़ती बीतते भी वैसा ही बना है। बुद्ध के उपवेशन-स्थानपर हैं। हिन्दुवोंके भी १० देवमन्दिर बने हैं। स्मरणार्थ एक मठ उठा है। राजधानीसे प्रायः पौन ___ इस प्रदेशमें मैत्रेयबुद्धको अति प्रकाण्ड मूर्ति रही। कोस उत्तर पर्वतपर बुद्धको पादुकाका चिह्न अङ्कित फाहियानने लिखा है-यह मूर्ति बुद्धके निर्वाणसे है। यहां भी मठ उठ गया है। नगरसे उत्तर ताराका | २८० वर्ष पीछे (अशोकराजके समय ) बनी थी। मन्दिर है। यह मन्दिर पतिवृहत और उच्च है। यत्रन चयङ्गने यही मूर्ति १०० फीट ऊंची पा इसमें बौद्ध देवदेवी और उपासकगणको मूर्तियां है। __फाहियान तथा सुयन 'उचङ्ग' और युअन चुपङ्ग- राजधानीसे दक्षिणपूर्व को पाठ दिन चलने पर एक ने इस स्थानका नाम 'उचङ्ग-न' लिखा है। जले, पार्वतीय प्रदेश मिलता है। यहां बुद्ध तपस्या करते कनिहाम् प्रभृति युरोपीयोंने चीना परिव्राजकोक्ता उक्त थे। इसी स्थानपर उन्होंने क्षुधात व्याघ्रौको अपने | शब्दका संस्कृत नाम 'उद्यान' ठहराया है। किन्तु यह देहका मांस खिलाया था। इस स्थानमें कल्यता मत भ्रमपूर्ण समझ पड़ता है। क्योंकि उक्त नामका उपजता है। राजधानीसे प्रायः ८८ कोस दूर एक तीर्थ संस्कृत 'उद्यान' नहीं-'उज्जानक' होना ही अधिक है। इसी जगह बुद्धने लिखनेके लिये अपने देहका | सम्भव है। विशेषतः महाभारत पुराणादि और चीना चम उतार लिया। इस पवित्र स्थानको रचाके लिये परिव्राजकके निरूपित स्थानपर उभयमें समधिक राजा अशोकने एक वृहत् मन्दिर बनवा दिया था। ऐक्य रहनेसे सहज ही मानना पड़ता-इनमें कोई भेद यमन्-चुयङ्गके मतमें हिन्दकुशके दक्षिणस्थ | नहीं, भिब देशमें उच्चारण तथा लिखन-प्रणालीके समस्त पार्वतीय प्रदेश पौर चिवालयसे सिन्धु नदी | भेदसे भिन्न प्राकार बन गया है। पर्यन्त दरद राज्य उन्नानक देश कहाता था। यहराज्य | ___ स्थानीय पांचकोरा, बिजावर, स्वात और बुनेर दर्य प्रस्थमें ५००० लि (प्रायः २१७ क्रोश ) परिमित प्रदेश प्राचीन उन्नानक राज्य के अन्तर्गत रहा। सात देखो। चौर गिरिपुष तथा उपत्यकासे मिलित है। उच्च' २ महर्षि उतके पाश्रमको निकटवर्ती एक सु- ।