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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१८०

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उज्जालक-उज्झटा १७८ विस्तीर्ण बालुकापूर्ण समतल मरुभूमि । (हरिवंश ११ १०) उज्जा (सं० त्रि.) आरोपित-ज्या, कमान् ढोली इस मरुस्थलके मध्यसे नलिनी नदी बहती है। कर देनेवाला। 'उज्जाधन्दा आरोपित न्यधनुष्काः।' (कात्यायन- (मत्स्यपु० १३३ १०) । श्रौतस्वभाष्ये कर्काचार्य) उज्जालक, उचानक देखो। उज्ज्वल (सं० त्रि.) उत्-ज्वल-अच्। १ दीप्तिमान, उज्जासन (सं० क्लो) उत्-जस्-णिच-ल्य ट् । मारण, चमकोला। २ विमल, साफ। ३ विकाशो, खिला वध, कृत्ल, जानका लेना। हुआ। ४ ज्वलन्त, जलता हुआ। ५ सुन्दर, ख ब- 'उज्जित्र (सं० त्रि.) उत्-वा-श। आवाणकर्ता, सूरत। (पु.) ६ शृङ्गाररस, मुहब्बत, .प्यार । सूचनेवाला। । (क्लो०) ७वर्ण, सोना। ८ धान्यभेद, एक अनाज। उज्जिति (सं० स्त्री० ) उत्-जि-क्तिन् । १ उत्कृष्ट जय, उज्ज्वलता (सं० स्त्री०) १ दीप्ति, चमक । २ सुन्दरता, गहरी फतेह। २ वाजसनेयसंहिताका मन्त्रविशेष। ख बसूरती। 'उज्नितिमनुपहतविघ्ने न हवि: खीकरणरूपमुत्कष्ट जयम् । (वेददौपे महौधर) उज्ज्वलत्व (सं० लो० ) उज्ज्वलता देखो। उज्जिहान, उचानक देखो। उज्ज्वलदत्त (सं० पु.) एक विख्यात पण्डित । उज्जिहाना (म० स्त्री० ) एक प्राचीन नगरी। भरत इन्होंने उणादिसूत्रको वृत्ति बनायी थी। वृत्तिमें राजग्गृहसे अयोध्या जाते समय इस नगरीमें पहुंचे प्राचीन कोष और स्थान-स्थानपर प्रमाणरूप प्राचीन थे। उस समय उज्जिहाना प्रियक वृक्षके उपवनसे काव्य उड़त हैं। कह नहीं सकते-उज्वलदत्त किस शोभित रही। समय विद्यमान रहे। किन्तु ११११ ई०को महेश्वरने "तव रम्य बने वासं कृत्वासौ प्राङमुखे ययौ। जो कोष रचा, उसे इन्होंने अपनी वृत्तिमें प्रमाणस्वरूप उद्यानमुजिहानाया: प्रियका यव पादपाः ॥” (रामायण २०७१।१२) रखा है। फिर १४३१ ई०को रायमुकुटने अपनी- उजिहीर्षा (सं० स्त्री० ) ग्रहण करनेको इच्छा, अमरकोषको टोकामें उज्ज्वलदत्तका नाम लिखा । पकड़ लेनेको खाहिश। ऐसा होनेसे समझ पड़ता-सम्भवतः वे ई०के १२वें उन्नीविन (सं०वि०) उत-जीव-णिनि। १ पुनार वा १३वें शताब्द विद्यमान रहे। जी उठनेवाला, जो दो बारा जिन्दा हो गया हो। उज्ज्वलन (सं० लो०) उत्-ज्वल भावे ल्युट । .(पु.) २ काकराज मेघवर्णके सभासद। १ उद्दीप्ति, चमक। २ निर्मलता, सफाई ।। उज्जम्भ (सं० त्रि.) उत्-जृम्भि-घञ्। १ प्रफुल्ल, प्रस्फु- उज्ज्वला (सं० लो०) १ दीप्ति, चमक । २ जगतो. टित, फूला या खिला हुआ। २ उद्घाटित, खुला।। छन्दःका एक भेद। यह बारह अक्षरकी रहती. और उज्जम्भण (सं० क्लो०) उत्-जम्भ भावे ल्यु ट। मुख- दो नगण, एक भगण तथा एक रगण रखती है। विकाश, जमहाई। - २ कुमरिच, लालमिर्च । उज्जम्भित : (सं० त्रि.) उत्-जम्भि-क्त । १ विकसित, उज्ज्वलित (सं० त्रि०) दीप्तिमान, रौशन, चमकने शिगुफ ता, खिला हुआ। २ वेष्टित, घिरा हुआ। वाला, जो झलकाया गया हो। (लो०) ३चेष्टा, कोशिश। ४ उज्जम्भण, जमहाई। उझ-तुदा० पर० सक० सेट् । यह त्याग और उज्जेय (सं० पु०) उत्-जिष् भावे घञ् । १ उन्नति, विराग अर्थमें लगता है। तरक्की, बढ़ती। (त्रि०) भावे अच् । २ उत्कृष्ट | उज्झ (स० पु.) उज्-भ-अच् । त्याग, विस- जययुक्त, जो खू ब जीता हो। जन, छूट, भूल। (मनु १९५६ ) उन्नेषिन् (सं० वि०) उत्-जिष्-णिनि। उत्छष्ट उज्झक (सं० पु.) १ मेघ, बादल। २ तापस, जयशील, खूब फतेह करनेवाला । फ़कौर। उज्जैन-ठव्वयिनी देखो। .. ... उजाटा (सं० स्त्री०) भूम्यामसको, भुई पांवला ।