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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१८८

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उड्रपुष्प-उतकामन्द १८७ उड़पुष्य (सं० लो) जवापुष्य, गुडहरका फल। फुस्फुस रक्तके फेन और उण्डक उसीके किसे उढ़ (हिं. पु.) सन्त्रासन, विजखा, घास-पात या उतपन्न होता है। विन्यास.पाशवन्ध, बनावट, जाल। काले लत्तेका पुतला। इसे खेतमें चिड़ियोंके डराने उण्डेरक (स० पु०) पिष्टकादि, रोटी वगैरह । या लोगोंकी बुरी नजर बचानेको गाड़ते हैं। "मूलकं पूरिकापूपांस्तथैवोह रकखनः।" (याज्ञवल्का ।२८) उढ़कन (हिं० स्त्री०) १ अवरोध, आड़। २ श्राश्रय, उण्डरकस्रज् (सं० स्त्री०) पिष्टकादिको तन्त्री, रोटी सहारा। ३ उपधानादि, तकिया वगेरह । । वग रहकी लड़ी। उढ़कना (हिं• क्रि०) १ रुकना, आगे बढ़ न सकना। उत् (सं० अव्य०) उ-किप। १प्रश्न-कैसे, क्यों, २ टकराना, किसोपर जाके पड़ना। ३ आश्रित होना, क्या। २ वितक-अथवा, किंवा, वा, या, या। सहारा पकड़ना। ३ समुच्चय-अखिल, समस्त, कुल, तमाम, सब। उढ़काना (हिं.क्रि.) किसीके आश्रयपर रखना, ४अधिक, ज्यादा। ५ सन्देह-कदाचित्, थायद । टेकसे ठहराना। उत (सं० अध्य.) उ-व। १ अत्यर्थ, अत्यन्त, बहुत, उढरना (हिं• क्रि०) उढ़री बनना, अपने विवाहित ज्यादा। २ विकल्प, कदाचित्, शायद। ३ समुच्चय, पतिको छोड़ परपुरुषके साथ निकल पड़ना । समस्त, कुल, तमाम, सब। ४ वितक, यदि, अगर । उढ़रो (हिं० स्त्री०) उपपत्री, रखनी, चोर-महल। ५ प्रश्न-क्या, क्यों। अहो, खब, ठीक। उढ़ाना (हिं. क्रि०) ओढ़ाना, ढांकना। यह सन्देह, वितक अथवा अवधारण अर्थमें प्रायः उढ़ारना (हिं. क्रि०) उदरी बनाना, किसीको (हि° क्रि०) उढरा बनाना, किसोको ! वाक्यके अन्तपर इति शब्दके पीछे लगता है। जैसे- स्त्रीको बिगाड़ना। 'सर्व भूतान्वित' पार्थ सदा परिभवन्ति उत' अर्थात् है पार्थ ! उढ़ावनी (हिं. स्त्री०) उत्तरच्छद, चादर, छोटी सर्वभूत उसे अवश्य सदा घृणाको दृष्टिसे देखते हैं । पिछोरी। प्रश्नार्थ में उत द्वितीय अनुयागके पीछे पड़ता है। जैसे- उढ़ौकन, उठंमन देखो। 'कय निर्णायते कि स्वान्नि कारणों बन्ध रुत विश्वासघातकः' अर्थात् उद् (सं० पु. लो०) १ जवापुष्पवृक्ष, गुड़हरका पेड़ । कैसे समझे आया वह निश्छन मित्र या विश्वास- २ जवापुष्य, गुड़हरका फल । घातक है। इस अर्थमें उतके साथ 'अहो' पानेसे उणक (सं० वि०) ओण अपसारणे खुल, निपा वाक्य प्रबल हो जाता है। जैसे-'कञ्चित्वमसि मानुषी उता- तनात् इव: डोष । षिद्गौरादिभ्यश । पा ४।१।४१ । अपसारक, हो सुराङ्गना' अर्थात् तुम साधारण स्त्रो पथवा अप्सरा हटाने या दूर करनेवाला। हो। कभी कभी इसके साथ 'अहोखिद' भी उणादि (सं० पु.) अपने आदिमें उण् प्रत्यय रखने लग जाता है। जैसे-'शालिहोत्र: किनु स्यादुताहोखिद्राजा ननः' वाला। यह शाकटायन और पाणिनि-उक्त उण प्रत्यय अर्थात् यह शालिहोत्र या राजा नल हैं। का समुदाय है। उज्ज्वलदत्तने उणादिसूत्रको वृत्ति “नमः पुरा ते वरुणोत नूनम्" (ऋक् ।२८८) बनायो है। २ ग्रथित, गौंथा हुआ। उण्डुक (सं० पु०) १ देहस्थ कोष्ठभेद, मलाशय, (हिं० क्रि० वि० ) ३ तत्र, वहां, उसतरफ, उधर । पेड़ का परदा । "इत उत चितय पूछि मालोगन । “स्थानान्यामग्निपक्वानां मूवस्य रुधिरस्य च । ___ लगे लेन दल फ ल मुदित मन ॥” (तुलसी ) दुस् कः फुस्फ सय कोष्ठ इत्यभिधीयते ॥” (सुनुत) उतंकामन्द-मन्द्राज प्रान्तके नीलगिरि जिले का प्रधान प्राशय सात हैं-आमाशय, पक्वाशय, मूत्राशय, नगर। यह अक्षा. ११.२४ उ. और ट्राधि० ७६ रत्ताशय, दय, उण्डुक और फुस्फुस्। ४४ पू. पर अवस्थित है। उतकामन्दमें म्युनिसिप- ___"शेषितफमत्र: फुस्स सः शेषितकिइप्रभव उखुकः ।" (सुश्रुत) ! लिटी और शासन सम्बन्धीय हेडक्वार्टर विद्यमान है।