पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१९६

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उत्कल (उड़ीसा) १६५ बना। प्रत्येक ग्राममें ब्राह्मणशासन विद्यमान है।। कक जमीन्दार और माफीदार होते भी अधिकांश नगर, ग्राम यहां तक कि घर घर मन्दिर बने खण्डायत कृषि कार्य करते हैं। हैं। प्रति पूर्व कालसे जगनाथको पूजा होती करण अपनेको भारतके प्राचीन विय बताते हैं। है। जगन्नाथ देखो। कितने ही करण जमीन्दारी करते और व्याज पर ब्राह्मण, शैवका प्राधान्य रहते भी वैष्णवमार्गी रुपया तथा चावल ऋण देते हैं। किन्तु अधिकांश लोगोंको अधिक प्यारा है। उड़ीसेके ब्राधाण वैदिक मनीम, हिसाबदार और छोटे अफसर हैं। इनकी पौर लौकिक दो प्रकारके होते हैं। कहते हैं-प्राय आर्थिक दशा साधारणतः अच्छी है। ई०के १२ वें शताब्दसे कन्नौज और बङ्गालके ब्राह्मण शूद्रों में चासा (प्रधान कषक ), ग्वाला, पान, तेली, पुरी जिलेमें आकर बसते हैं। उन्हींका नाम वैदिक बाउरी (मजदूर) तांती (जुहाले), केवट, नापित, है। इससे कोई सौ वर्ष पहले वे उड़ीसाको प्राचीन धोबी, कुन्हार, बढई, कन्दू (इलवाई), लोहार, चमार, राजधानी याजपुरमें आ टिके थे। किन्तु ११७५ और मालो, हड्डो (मेहतर), मोदक (मोदी), डोम, १२०२ ई० के बोच जगन्नाथ मन्दिरको पुनः बनवान- जुगी (कोरी), सुनरी (कलवार ) प्रभृति प्रधान हैं। वाले राजा अनङ्गभीमदेवने उनके लिये पुरी जिले में पान पूर्व समयमें नरवलिके अर्थ मानवको पकड़ ४५. उपनिवेश स्थापित किये। वैदिक ब्राह्मण ले जाते थे। -कुलीन और थोत्रिय दो श्रेणीमें विभक्त हैं। कुलीन यहां मुसलमान भी बहुत रहते हैं। किन्तु वे दरिद्र, ब्राह्मणके वाच, नन्द और गौड़ीय तीन पद्धति होती हैं। अभिमानी और असन्तुष्ट हैं। कितने हो अफगानोंके जीविका राजाको दो हुई माफ भूमि, बालकोंको वंश प्रतिष्ठित हैं। किन्तु वास्तविक ये मुसलमानी शिक्षा और पूजा अर्चनासे चलती है। श्रोत्रिय-कन्याका फौजके साथ आये सिपाहियोंके सन्तान हैं। विवाह अपने पुत्रके साथ करनेपर वैदिक ब्राह्मण आदिम अधिवासियोंमें गोंड, सन्याल, भुइया, बड़ा दहेज लेते हैं। श्रोत्रिय ब्राह्मणके भट्ट, धर, भूमिज, खरवार और कोल अधिक हैं। इनमें कुछ उपाध्याय, मित्र, रथ, श्रोत, क्यिारी, दास, पति और हिन्दू धर्मको मानते और कुछ अपने स्वतन्त्र मतपर 'शतपथी नव पद्धति हैं। लौकिक ब्राह्मण सबसे छोटे चलते हैं। और उडीसके आदि अधिवासी हैं। इनमें छः पद्धति ईसाइयों में युरोपीय, यूरेशीय, देशीय और एसि- -हैं-पण्डा, सेनापति, परही, बसतिया, पानि और याके लोग मिलते हैं। ई वापतिस्त मिशनसे माहु। कृषि, वाणिज्य, शाकविक्रय, रुपये का लेन सम्बन्ध रखते हैं। देन और तीर्थयात्रियोंको पथप्रदर्शन इनके धनोपा प्राचीन काल में इस देश में जैनों तथा बौद्धोंका प्राबल्य जनका प्रधान हार है। अधिक रहा। किन्तु सन् ई०के ४थे शताब्दमें बौद्ध- क्षत्रिय तीन प्रकारके हैं-देव, लाल और राय। धर्मका प्रभाव घटा था। फिर शैवका प्राधान्य बढ़ा। राजा, जागीरदार और महाजन इनमें मिलित हैं। भुवनेश्वर नगरमें सन् ई०के ७३ शताब्दसे सैकड़ों संख्या न्यून रहते भी आर्थिक दशा अच्छी है। द्वितीय - शिवमन्दिर बन गये हैं। वैष्णव महाभारत और श्रेणी सिंह पौर चन्द्र राजपूतोंकी है। यह छोटे मोटे रामायणको मानते हैं। किन्तु शिव और विष्णु दोनो जमीन्दार होते या फौज, पुलिस, दरबानी और चिट्ठो। सच्चिदानन्दस्वरूप परब्रह्मके एक अंश समझे जाते रसाईका काम करते हैं। लोगोंके शूद्र कहते भी हैं। कलिन, भुवनेश्वर और जगन्नाथ देखो। खण्डायत अपनको क्षत्रिय बताते हैं। पूर्व समय प्रति वर्ष उड़ीसमें चौबीस धार्मिक महोत्सव होते 'स्थानीय नृपति इनको निष्कर भूमि दे युद्धका काम हैं। उनमें विष्णुका हो पूजन अधिक रहता है। "लेते थे। आज कल इनकी संख्या बहुत अधिक है। वैशाख मासमें चन्दनयाना तीन सप्ताह चलती है।