पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२००

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उत्कल (उड़ीसा) १६४ प्रतापवीर नरनारसिंह देव रहा। कलिङ्गके शासक । १३७४ शक (१४५२ ई०)में इस गङ्गवंशका लोप नरहरितीथेने कामेश्वरके सम्मुख योगानन्द-नृसिंहका, होनेपर कपिल नामक एक सूर्यवंशी पुरुष कपिलेन्द्रदेव मन्दिर बनवाया था। उपाधि धारण कर उड़ीसेके राजा बने। उन्होंने सेतुबन्ध १२२७-८से १२४९-५० तक २य भानुदेवका राज्य | रामेश्वर तक अधिकार फैलाया था। इसी वंशमें रहा। वेश्य नृसिहदेवके औरस और चोडा प्रतापरुद्रने जन्म लिया। प्रतापरुट्रके राजत्वकाल पर देवीके गर्भसे उपजे थे। पूर्ण उपाधि श्रीवीरादिवोर श्रीचैतन्यदेव श्रीक्षेत्रके दर्शनको गये थे। प्रतापरुद्रके श्रीभानुदेव रहा। इनके साथ गयासुद्दीन तुगलकका पौत्र कखारुया देवके राजत्व बाद कपिलवंश मिटा। तुमुल युद्ध चला था। १५५२ ई में मुकुन्ददेव राजा हुये थे। उनके राजत्वक १२४८-५०से १२७४-५ तक श्य नृसिहदेव अन्तिमकाल पर देवहेषो कालापहाड़ यहां आ पहुंचा राजाके पद पर बैठे। वे भानुदेवके औरस और था। मुकुन्दके पुत्र गोडिया गोविन्द जब राजा रहे, तब रानी लक्ष्मीदेवीके गर्भसे उत्पन्न हुये थे। उनके कालापहाड़ पुरी लटने गये। गोविन्द जगन्नाथ देवको महिषो कमला देवीके गर्भसे सीतादेवी नामक मूर्ति उठा गढ़ पारकूदकर भागे थे। फिर १८ वत्सर कन्या हुयो। अराजकता चली। अनन्तर भूजां-वंशीय रामचन्द्रदेव १२७४-५से १३००-१ तक श्य भानुदेवका अधि नामक एक व्यक्ति राजा हुये। उन्होंने जगनाथ देवको कार रहा। वह श्य नृसिंहदेवके औरस और | अवशिष्ट मूर्ति फिर पुरोमें स्थापन करायो थी। कमला देवीके गर्भसे उत्पन्न हुये। उपाधि श्रीवौर | १५१० ई० को मुसलमानोंमें इस्माइल गाजीने अथवा वीरश्री भानुदेव और प्रतापवीर भानुदेव रहा। सर्व प्रथम उड़ीसे पर आक्रमण मारा था। किन्तु बङ्गालके शासक काजी इलयासने श्य भानुदेवके | आधिपत्य जम न सका। उस समय भो हिन्दू राज- मरनेसे उत्कल पर आक्रमण किया था। गणका प्रबल प्रताप था। कालापहाड़ के आनेसे १३००-१से १३२४ तक ४थं नृसिहदेव राज्य स्थानीय राजा नानाप्रकार होनबल हो गये और अव- करते रहे। वे श्य भानुदेवके औरस और चालुक्य सर देख बङ्गालके नवाब सुलेमान कररानोन अनेक कुलकी रानी हीरादेवोके गर्भसे उपजे थे। औपा स्थान जीत लिये। 'धिक नाम वोरनसिंहदेव, वीर-यौनरसिंह देव और १५७४ ई०को अकबरके सेनापति मुनाइम् खान् वीरश्रीनृसिंहदेव रहा। उनके समय जौनपुरके और टोडरमल उड़ौसेपर झपट पड़ थे। बङ्गाल, शरको खानदानवाले खाजा जहान्ने लक्ष्मणावती विहार और उड़ीसके नवाब दाऊदसे जलेश्वर निकट और जाजनगरको कर देनेपर वाध्य किया था। फिर मुगलमा में बुद्ध चला, जिसमें दाऊदके हारते बङ्गाल बहमान वशके सुलतान् फौरोज़ जाजनगरमें पहुंच एवं बिहार अकबरके हाथ लगा। वे केवलमात्र कितने ही हाथील गये। मालवेके नवाब हुसे उड़ोसेके नवाब रह गये। दाऊद देखो। मध्य दाऊ- नुद्दीन् होशङ्गने भी जाजनगर पर पाक्रमण मारा था। दको प्ररोचनासे अफगानोंने फिर मुगलों पर अस्त्र ___इसके पोकेका वृत्तान्त किसी दानपत्र वा शिला उठाये थे। नाना स्थानपर मुगल और पठान लड़मरे। लेखमें नहीं मिलता। मादलापंजी अथवा जगन्नाथ १५७८ ई०के समय पकबरने मासूमखान् काबुलीको मन्दिरके वृत्तविवरणसे समझते हैं, गानेयवंशके अन्तिम उड़ीसेका शासनकर्ता बनाकर भेजा था। किन्तु कुछ नृपति भानुदेव रहे। उनका शासन शक १३५६-से दिन पीछे उन्होने पठानोसे मिल मुगलोको उडीसेसे लगा था। उन्हें अकटा अबटा या मत्त भी कहते थे। भगा दिया। फिर कत्लखान् नामक एक पठानने उनके मरने पर कपिलेन्द्र वा कपिलेश्वरदेव मन्त्रीने | उड़ीसेका सिंहासन पाया था। अकबरने कत्ल- -सिंहासन हड़प कर सूर्य वंशको प्रतिष्ठा को थो। खान्के विरुद्ध मुगल सेना भेजी। सचीमाबादमें कत्ल