२०० उत्कल (उड़ीसा) खान्ने सप्तग्रामके शासनकर्ता नजातको हराया था। हरा खुरदा भी दिल्ली-सम्राटके अधीन कर दिया था। कतलुखान् देखो। किन्तु राजमहेन्द्री स्वाधीन ही रही। १५८.ई में राजा मानसिंह बङ्गाल और विहारक १६२१ ई० पर शाहजहान्ने विद्रोह लगाया था। शासनकर्ता बने। वे वर्षाकाल पर वर्धमानके दक्षिण- उन्होंने अपने पिता जहांगीरकरखे तत्कालीन शासन- पश्चिमदिकस्थ गढ़-मन्दारनमें ठहर उड़ीसा जीतने कर्ता अहमद बैको हरा उडीसा जीत लिया था। चले थे। धरपुरमें कुत्लखानुसे युद्ध छिड़ा। मुग़ल- युद्ध में पठान-सामन्त उनसे मिल गये थे। सिपाही हार और मानसिंह पुत्र जगतसिंह बन्दी १९२४ ई में शाहजहानने अंगरेजोंको वङ्गदेशमें बने । कत्लुखानने विष्णुपुर जीत लिया था। अल्प दिन जहाजके सहारे वाणिज्य करने का आदेश दिया। बाद हो कतलखान् सहसा मर गये। उनके प्रधान | किन्तु बङ्गाल, विहार और उडोसेके ततकालीन वजीर ईसा खान्ने मानसिंहसे सन्धि कर ली। जगत- शासनकर्ता आजिम खान बोल उठे-अंगरेज सिंहको मुक्ति मिली और पुरी अकबरके अधिकारमें | बालेखरके निकटवर्ती केवल पिपली नामक स्थानमें आ गई। हो जहाज लगा सकेंगे। १५८२ ई में सुलेमान और उसमान् नामक १७०६ ई० को बङ्गाल, विहार और उड़ीसेके कृतन खानके पुत्रोंने सन्धिको तोड़ पुरी पर आक्र नवाब मुर्शिदकुलीखानने उडौसेसे मेदिनीपुरका जिला मथ मारा था। राजा मानसिंह द्वितीय बार उडीसे स्वतन्त्र कर दिया था। पहले वह उड़ीसेके हो अन्त- पाये। बनापुरमें मुगल और पठान भिड़ गये थे। गत रहा। पठान हारे। सुलेमान् और उसमानने फिर अवशिष्ट १७७५ ई० में मुहम्मद तकीखान् उड़ोसेके सह- पठान मैना जोड सारनगढ में लडनेको अस्त्र उठाया। कारी शासनकर्ता बनकर आये थे। उसी समय खुर- किन्तु वे मुगलौका तेज सह न सके थे। शेष बुद्ध हो दाके देशी राजा रामचन्द्रदेवने मुसलमानों पर अस्त्र गया। सुलेमान् और उसमान मानसिंहसे झुके थे। उठाये। अनेक युद्धके बाद वे कटकमें कैद हुये थे। उडीसा राज्य अकबरको मिला। राजा मानसिंह मुसलमानों के भयसे पण्डे जगन्नाथ-देवकी मूर्ति दाब- बङ्गाल, विहार और उडीसके राजप्रतिनिधि बने थे। कर भाग यये। उसी समय स्थानीय देशी राजा रामचन्द्र देवको पक १७३४ ई० में मुरशिद कुलीखान उड़ीसेके सहकारी बरने बहुत माना। अकबरके अधिकार में पहुंचने पर शासनकर्ता बने। उन्होंने आकर देखा-पूर्व समयको उडीसा (बङ्गाल पौर विहारके साथ) एक शासन भांति आमदनी वसूल न होती इसका प्रधान कारण कर्ता के अधीन रहा। जगन्नाथदेवकी मूर्तिका पुरीमें न रहना है। दूर १६.०ई०को उड़ीसा स्वतन्त्र हुपा। हाशिम देशान्तरसे यात्रिगणका पाना बन्द हो गया। पहले खान् नामक एक व्यक्ति शासनकर्ता बने थे। यात्रिगणका गमनागमन लगा रहनसे आमदनीकड १६११ ई में राजा कल्याणमल उड़ीसेके शासन-| परिमाण क्रमश: बढ़ते ही जाता था। फिर उन्होंने कर्ताहये। उसी समय उसमान फिर लुप्त स्वाधीनता पण्डावोंसे मूर्ति लाकर फिर मन्दिरमें रखनको विशेष बचानको दौड़े। उन्होंने पठानोंसे मिल शेष चेष्टा समझाया। जगन्नाथको मूर्ति वापस पायी पार लगायो। किन्तु इसबार उन्हें घूमना न पडा, सुवर्ण आमदनी भी अधिक परिमाणसे बढ़ गयी। रेखाके तौर रसको सम्या पर प्राण छूट गया। ___१७३८ ई० में शरफराज खान् विहार और उड़ी- खुरदा और राजमहेन्द्रीको छोड़ उड़ौसेके सकल सेके शासनकर्ता बने। किन्तु तत्पर ही अलोवर्दी- स्थानोंपर अकबरका अधिकार जमा। १६१८ई में | खानने उन्हें हरा सिंहासन ले लिया। . मुकरमखान् नामक तत्कालीन शासनकर्ताने राजाको १७४१-४२ ईमें मराठोंका उत्पात उठा। पार .
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