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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२२०

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२१६ उत्पन्नविनाशिन्-उत्पलगन्धि उत्पन्नविनाशिन् (स. त्रि.) उद्भूत होते ही मृतु, त्पल कहते हैं। वैद्यक शास्त्रके मतसे यह शीतल, पानवाला, जिसे पैदा होते ही मौत पकड़े । मधुर और कफ तथा पित्तका नाशक है। उतपन्ना ( सं० स्त्री० ) मार्गशीर्षके कृष्णपक्षको रक्त उत्पलका नाम कोकनद, हलक, रक्तसन्धिक, एकादशी। रक्लोपल, रक्तसरोरुह, रक्ताम्भ, अरुण, कमल, गोणपद्म, उत्पल (स० लो०) १ जलजात लताविशेष,पानीको एक अरविन्द, रविप्रिय और रक्तवारिज है। वैाकके बेल। इसका संस्कृत पर्याय-पद्म, नल, नलिन,अम्भोज, मतसे यह कट, तिक्त, मधुर, शीतल, सन्तर्पण एवं अम्बुजन्म, अम्बुज, श्रो, अम्बरुह, अम्ब पद्म, सुजल, वृष्य और पित्त, कफ तथा रक्ताके दोषका नाशक होता अम्भोरुह, सारस, पङ्कज, सरसोरुह, कुटप, पाथो है। किन्तु श्खेतको अपेक्षा रक्तमें गुण कम है। . रुह, पुष्कर, वाजे, तामरस, कुशेशय, कञ्ज, कज, नील उत्पल इन्दीवर, नौलोत्पल, मृत्पल, कुव- अरविन्द, शतपत्र, शतदल, विसकुसुम, सहसपत्र, लय, नोलाब्ज, नीलमुत्पल और भद्र कहाता है। महोत्पल, वारिरुह, सरसिज, सलिलज, पनेरुह, इसमें रक्तोत्पलसे भी गुण अल्प है। राजीव और कमल है। उतपलको हिन्दीमें कंवल, मराठोमें कनबल और तामिलमें अम्बल कहते हैं। (Nelumbium speciosum) बहु कालसे भारत- वासी इसके पुष्पको अति पवित्र समझते पाये हैं। वेदमें भी “कमलाय खाहा" ( तैत्तिरोयसहिता ७१८१) मन्त्र मिलता है। उत्पलके वीजकोषका कर्मिकर, मधुका मकरन्द, महाभारतके अनुसार भगवान्की नाभिसे उत्पल, केशरका किञ्जल्क और नालका नाम मृणाल है। और उतपलसे ब्रह्माका उद्भव हुआ है। यूनानी वैद्योंके मत में यह तिक्त और शैत्यकारक है। "प्रधानसमकालन्तु प्रजाहेती: सनातनः । पारस्य देशसे नानास्थानों को उत्पलका वीज भेजा ध्यानमाव तु भगवन्नाभ्यां पद्मः समुत्थितः । ततचतुर्मुखो ब्रह्मा नाभिपद्मादिनिःसृतः।" जाता है। उत्पल पुष्प भारतवर्षीय नाना स्थानोंके ( महाभारत वन २७१।४१-४२) देवमन्दिर और भोटानमें पूजाके लिये व्यवहृत होता पाश्चात्य पण्डित खिोटेसने Kuamus Aigyptios है। पूर्वकालमें मिशरके अधिवासी भी उत्पलको ( इजिप्तको सेम) और नीलोफर नाम लिखा है। पवित्र पुष्य समझ पूजामें व्यवहार करते थे। . यह लता अमेरिका, कास्यीय सागरके तटस्थ प्रदेश, भारतवर्ष, पारस्य, चीन और मिशरमें उपजती बूटी। ४ एक जन विख्यात ज्योतिवित् । भट्टोत्पल देखो। है। खेत और रक्त. उत्पल भारतवर्षके अनेक ५ बौद्ध शास्त्रोक्त नरक। (दिव्यावदान ६७।२३) स्थान, पारस्य, तिब्बत, चीन और जापानमें मिलता उत्पलक (सं० पु०) १ क्षेत्रकरोष, खेतका कूड़ा है। किन्तु नौल उत्पल केवल काश्मौरके उत्तरांश, कर्कट। २ नीलोत्पल, नौला कमल। ३नागराज तिब्बतके अन्तर्गत गन्धमादन और चौनके किसी विशेष। किसी स्थान में देख पड़ता है। उत्पलकन्द (स० पु०) शालक, कसेरू । पृथिवीके मध्य चीन देशमें ही यह अधिक होता उत्पलकुष्ठक (सं० पु.) कुष्ठौषध, एक बूटी। है। चीना इसका मूल बड़े प्रेमसे खाते हैं। उत्पलकेसर (सं० लो०) पद्मकेशर, कमल को धूलि । उत्पल तीन प्रकारका है-खेत, रक्त और नील। उत्पलमन्धि (सं० लो) गोशोष, एक प्रकारका ... खेत उत्पलको शतपत्र, महापद्म, पुण्डरीक, चन्दन। यह पोतल जैसा और बहुत खुशबूदार शिताम्ब ज, नल, सरोज, नलिन, अरविन्द पौर महो- होता है। लिा वगैरह। ३ कुष्ठोषधि, एक