पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२२२

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उत्पलौ-उत्यादिन् २२१ उत्पन्ली (सं० स्त्री०) तुषचपटी, भूसीको चपाती : दिव्य, आन्तरीच्य और भौम भेदसे तीन प्रकारका या रोटी। | होता है। सूर्यग्रासादि दिव्य, उल्कापातादि प्रान्त- उत्पलेखर ( स पु०) महानदीका तोरवर्ती एक रीक्षा और भूमिकम्पादि भौम है। प्राचीन तीर्थ । महानदी देखो। उत्पातक (सं० पु. ) उत्-पत-णिच-ख ल । उत्पवन (सं० लो०) १ प्लावन, सैलाब, बूड़ा। १ अर्ध्व पतनशील जन्तु विशेष, उछल उछल कर "सावनमुत्पवनमाहुः।” (मनुभाष्ये मेधातिथि ५।११५) चलनवाला एक जानवर । इसके अष्ट पाद होते हैं। २ यज्ञीय पात्रादिके संस्कारभेद। "देशोत्पातकभन्न कमक्षिकामशकावृतम् ।" (भारत वर्गा० २ १०) (आश्वलायनग्टह्यन्व १।३।२.३) २ तीर्थ विशेष । ( भारत अनु० ) (त्रि०) उत्-पत-खुल् । ३ कुशादि द्वारा जलका उत्क्षेपण। ३ अव पतनशील, उड़ने या उछलने वाला। उत्पविष्ट (सं० वि०) १ पावन, पाक। २ पावन उत्यातकेतु (सं० पु० ) अमङ्गल चिड़, बुरा करनेवाला, जो पाक साफ बनाता हो। निशान्। उल्कापात, भूमिकम्प और उपद्रवके उत्पश्य (सं० त्रि०) ऊध्वमुख, ऊपरको ओर पातका निमित्तक उदित धूमकेतु प्रभृति उत्पात- देखनेवाला। केतु कहाते हैं। उत्पाट (स० पु०) उत्-पट-घ । १ उत्पात, उत्पाती ( सं० त्रि. ) उपद्रव उठानेवाला, जो उखाड़। २ कर्णरोग विशेष, कानको एक बीमारी। आफत डालता हो। उत्पाटक (स० पु.) कर्णपालीगत रोग, कानको उत्पाद (स. पु०) उत्-पद भावे घञ् । उत्पत्ति, नोकमें होनेवाली एक बीमारी। गुरु अाभरणके पैदायश, उपज । संयोग, ताड़न एवं अति घर्षणसे कण को पालोमें जो उत्पादक (सं० पु०) जयस्थिता: पादा अस्य, उत्- शोथ, दाह और पाकका रोग लगता है उसे उत्- पद-णिच्-ख ल। १ पशु विशेष, एक जानवर। पाटक कहते हैं। (माधव निदान ) इसमें कान अष्टपादयुक्त गजाराति शरभका नाम उत्पादक है। चटचटाया करता है। ( सुश्रुत ) फारसीमें इसे हुमा कहते हैं। (लो०)२ कारण, उतपाटन (सं० लो०) उत्-पट-णिच् भावे ल्य ट । सबब । (त्रि.) ३ उतपत्तिकारक, पैदा करनेवाला। १ उन्मूलन, उखाड़। २ वायुजन्य व्रणको एक वेदना, उत्पादन ( सं० लो० ) उत्-पद-णिच्-त्य ट् । वातस पैदा होनेवाला दर्द। १ उत्पत्तिकारण, पैदा करनेका काम । (त्रि.) उत्पाटिका (सं० स्त्री०) उत्-पट-णिच्-खुल्- २ उत्पादक, पैदा करनेवाला। टाप् प्रत इत्। १ वृक्षको शुष्क छाल, पेड़का सूखा उत्पादपूर्व (सं० ली.) जैन-शास्त्रोक्त १४ पूर्वमें बकला। २ उत्पाटनकी, उखाड़ डालनेवाली। प्रथम पूर्व। पूर्ववाद और जैनशास्त्र देखो। उत्पाटित (सं० त्रि०) उत्-पट णिच् त । उन्म - उत्पादशयन (सं० पु.) टिभि पक्षी, टिटिहरी। लित, उखाड़ा हुआ। उत्पादिका (सं० स्त्री० ) उत्पद-णिच-ख ल- उत्पाटिन् (सं० त्रि.) उन्म लन करनेवाला, जो टाप अत इत्। १देहिका नामक कोट, दीमक । उखाड़ डालता हो। २हिलमोचिका, हरहुच। ३ पूतिका, पोय । उत्पाट्य (सं० व्य०) उन्मूलन करके, उखाड़कर। उत्पादित (सं० त्रि.) उत्पन्न किया हुआ, जो (वि.)२ उखाड़ डालनके योग्य । पैदा किया गया हो। उत्पात ( स० पु०) उत्पत भावे घञ् । १ ऊर्ध्व-उत्पादिन् (सं० त्रि०) उत्पन्न करनेवाला, जो पतन, उड़ान, उछाल। २ सङ्कट, आफत। ३ अशुभ पैदा करता हो। समासान्तमें इस शब्दका अर्थ सूचक अकस्मात् देवघटना, आस्मानी ग़जब। यह 'उत्पन्न किया हुआ' लगता है। Vol III. 56