पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२३७

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२३६ उदयपुर वा मेवाढ़ जिन राजपूतोंने मुसलमानोंको कन्या दी, उनसे । राणा अरिसिह आखेटखेलते समय बू'दोके युव- उदयपुरके राणावंशीयन विवाहसूत्र में बंधनेकी इच्छा न राजद्वारा मारे गये। उनके बालकपुत्र हमीर राजा की। इसीसे उदयपुरके राणावोंका गौरव बहुत बढ़ा था। हुये थे। १७७८ ई० में इमोरके मरनेपर तदीय धाता किन्तु अपर राजपूत राजगणके चक्षु में वह खटक गया। भीमसिंहने सिंहासन पाया। उनकी कन्या कृष्ण कुमारी उन्होंने उदयपुरके राजगणसे वैवाहिक सूत्र में बंधनेको परम रूपवती रहीं। रूपको प्रशसा सुन जयपुरके अनेक चेष्टा लगायी थी। अवशेषमें उदयपुरसे राणावोंने राजाने उनसे विवाह करना चाहा था। भीमसिंह कन्या देने पर सम्मत होने भी नियम रखा-राणा भी इस शुभकायपर सम्मत हो गये। किन्तु मारवाड़के वंशीय कन्यासे जो पुत्र जन्म लेगा, वही राज्यका राजा मानसिंहने कहला भेजा था-'उदयपुरके उत्तराधिकारी बनेगा। अपरापर राजपूत राजा राजो पूर्वतन राजगणने मारवाड़के राजाको कन्या देनेको हो आदान-प्रदान करने लगे थे। पहिलेसे ही प्रतिज्ञा कर रखी है। अतएव उसी प्रङ्गी. १७४३ ई में जयपुरके राजा सवायी जयसिह कारके अनुसार अब उन्होंको कन्या देना उचित है।' मर गये। ज्वेठपुत्र ईश्वरीसिंह राजा बने थे। किन्तु भीमसिंह विषम समस्या में पड़ गये। किसको कन्या राणाको भगिनीके गर्भसे जयसिहका मधुसिह नामक दी जाय ? जयपुरके राजाको कन्या न देनेसे बात एक कनिष्ठ पुत्र हुआ था। इन्हीं मधुसिहको राजा कटती है और मानसिंहसे मुंह मोड़ने पर पिटपुरुषको बनाने के लिये अनेक लोगोंने यत्न लगाया। राणा ख्याति घटती थी। उस समय जयपुरके राजमन्त्रीने ईखरीसिह के विरुद्ध सैन्य चला था। किन्तु सेंधियाके समझाया-‘ऐसे स्थलपर कन्याको मार डालना श्रेय साहायसे ईश्वरीने राणाको हरा दिया। फिर है। इससे सकल दिक् रक्षा रहती है। भीमसिहने राणाने ईखरीको राज्यसे निकालने के लिये होलकरका मन्त्रीके कथनानुसार वैसाही कार्य किया था। विष- साहाय्य लिया था। विषप्रयोगसे ईश्वरी मारे गये।। प्रयोगसे कृष्णकुमारोके जीवन गत कर दिया। इसी मधुसिहको राज्य मिला। समयसे १८१७ ई०तक मराठे समय-समयपर पहुंच- १७५२ ई में राणा जगत्सिहके मरनेपर तत्पुत्र कर मेवाड़का राज्य लूटते रहे। उसके बाद अंगरेजोंका प्रतापसिंह राणा हुये। इसो समयसे मेवाड़राज्यमें शासन चलनेसे उत्पात मिटा था। मराठोंका उपद्रव उठने लगा। प्रतापसिंहके बाद १८२८ई में भीमसिहके मरने पर तत्पुत्र जवान- तत्पुत्र राजसिंहने कुछकाल राजत्व रखा था। फिर सिंहने राज्य पाया था। जब वे भी मरे, तब पुत्रादि उनके पितृव्य अरिसिंह राणा बने। सरदार उनसे | न रहनेसे जातिसम्पर्कोय सरदारसिंह महाराणा बिगड़ राजसिहके बालकपुत्र रत्नसिहको मेवाड़ का | बने। १८४२ ई में वे भी मर गये। फिर उनके सिंहासन सौंपनेपर तत्पर हुये। मेवाड़में दो दल बंधे। कनिष्ठ भ्राता स्वरूपसिंहको मेवाडका राज्य मिला। थे। एकने अरिसिंह और अपर दलने रत्नसिंहका पक्ष १८६१ ई० में स्वरूपसिंहके दत्तकपुत्र शम्भ सिंह पकड़ा था। उभय दलने मराठोंसे साहाय्य मांगा। महाराणा बने थे। १८७४ ई० में फिर उन्होंने अपने संधिया परिसिंहके विपक्ष में लड़े थे। उज्जयिनीके निकट ज्येष्ठ भ्रातुष्प त्र सज्जनसिंहपर राज्यका भार डाल कई बार युद्ध हुआ। राणा हारे थे। सेंधिया उदयपुर इहलोक छोड़ दिया। १८८४ ई०को २३वौं दिसम्बरको घरनेको बढ़े। किन्तु राणाके दीवान अमरचन्द्रने | सज्जनसिंह मरे थे। उनके बाद फतेहसिंह उदय- अपने बुद्धिकौशलसे सब गड़बड़ मिटा दिया था। पुरके महाराणा हुये। १८८६ ई० में महाराणा साहव- संधिया ६३५००००० रु. लेनेपर स्वीकृत हुये। इसमें को जि, सि, एस, आई, (G..C. S. I.) की पदवी ३३००००० रु. नकद और अवशिष्ट रुपयेके लिये मिली। कविराज श्यामलदासजी जो महाराणा जवदजिरम, नीमच और मरबून् जिला रेहन रहा। । सज्जनसिइके समयमें प्रधान मन्त्री थे, अंगरेजी सर-