पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२४०

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उदयमती-उदयसिंह २३६ पिप्पलीमूल वा त्रिकटु पांच भाग पड़ता है। २ हिक्का । प्रबल शत्र रहे। एक समय रसालु अपनो राजधानी में और खासका एक रस, हिचकी और दमेको एक दवा। उपस्थित न थे। अवसर पाकर उदय उनको प्रधान अन एवं गन्धकको बराबर-बराबर खेत अपामार्ग के पत्नी कोकिलकुमारी पर आसक्त हुये। रानौने भी ट्रवसे पीस पातालयन्त्र में पकाते जव भागपर जो वस्तु उदयके प्रेमसे मुग्ध हो आत्मसमर्पण कर दिया था। उड़कर लग जाता, वहो उदयभास्कररस कहलाता किन्तु उनके पास एक पालतू मेंना थी। वह पर- है। यह दो गुच्चाके अनुमान रोगोको खिलानेसे पुरुषके साथ रहनेपर कोकिलकुमारीको विस्तर पञ्चविध श्वास अच्छा होता है। (रसेन्द्रसारसंग्रह) भत्सना बताने लगी। अवशेषको रानीने उसके उदयमती-बम्बई प्रान्तस्थ गुजरातके चालुक्यराज | पिंजड़ेकी खिड़की खोल दी। वह उड़कर जुलना- (१०२२ से १०६० ई.) १म भीमको एक पत्नी।। कम्पन नामक स्थानपर पहुंची। रसालु निद्रित इनके पुत्र का नाम कर्ण रहा। द्याश्रयकाव्य में लिखा | रहे। मैना उनके शयन एहमें घुस 'चोर चोर' है-एक दिन किसी चित्रकारने कर्णको चन्द्रपुरके चिल्लाने लगी। रसालुको निद्रा टूट गई। उसने कदम्बराज जयकेशीको कन्याका चित्र देखोया, जिसने राजासे एक एक बात कह दी। पीछे रसालु अपनी उनसे विवाह करनेका शपथ उठाया था। चित्रकारने राजधानीको आये थे। उन्होंने सम्म ख युद्ध में उदयको कहा-राजकन्याने आपकी भेंटके लिये एक हाथो मार डाला। उदयको कोई उदी और कोई हुदी भेजा है। कण जब हाथी लेने गये, तब उसपर उक्त । कहता है। पुरातत्त्वविद् समझते हैं-इन्हीं उदयसे राजकन्याको देख विस्मित हुये। किन्तु उन्होंने उसे | तोचरी या यूची और रसालुसे शक या शु जाति कुरूप पाकर विवाह करना अस्वीकार किया। उस- उपजी है। अति प्राचीन कालसे इन उभय जातियों में . पर राजकन्याने अपनी पाठ सहेलियों के साथ चितापर विवाद होता आया है। चढ़ भस्म हो जानेको ठानी थी। उदयमतीने कर्ण से उदयवत् (सं० त्रि०) उस्थित, उठा या निकला हुषा, कहा-आपके विवाह न करनेसे मैं भी प्राण दे दंगो।। जो चढ़ आया हो। यह दशा देख कर्ण ने विवाह किया, किन्तु राजकन्या | उदयवराह-बम्बई प्रान्तीय गुजरातके कर्णावती मियाणल्ल देवीको पत्नी खरूपमें न लिया। उधर नगरका एक जैन-मन्दिर। चालुक्यराज कण (१९६४- मजाल मन्त्रीको किसी लौंडीसे समाचार मिला- १०८४ ई०)के उदा मन्त्रीने इसे बनवाया था। इसमें कर्ण एक बांदौको बहुत चाहते हैं। उन्होंने मिया- | ७२ तीर्थ धरोंकी मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। जिनमें णलदेवीको उक्त बांदी बना राजासे मिला दिया ।। २४ भूत, २४ वर्तमान और २४ भविष्यत् तीर्थङ्कर हैं। कण को वृद्धावस्थामें मियाणलदेवीके सुप्रसिद्ध सिद्ध- उदयसिंह-१ मेवाड़वाले राणा साङ्गाजीके कनिष्ठ राज सिंह नामक पुत्र उत्पन्न हुये। कहते हैं-तीन पुत्र । अल्पकालस्थायी वनवीरके राजत्वके बाद ये वर्षको अवस्थामें ही सिद्धराज सिंहासनपर एक दिन मेवाड़के सिंहासनपर बठे थे। इन्होंके समय चित्तौरकी चढकर बैठ गये। यह देख कण ने ज्योतिषियोंसे | राजलक्ष्मी चलती बनो। १५६८ ई में वीरभोग्य पूछ उन्होको राजा बना दिया था। चित्चौर नगर अकबरने ले लिया था। फिर राणा उदयमाणिक्य-त्रिपुराक एकजन राजा। कोई सवा उदयसिंहने चित्तौर छोड़ राजपिप्पली वनमें तीन सौ वर्ष पहले यह त्रिपुराके राजा रहे। इन्हीं के गोहिलोंके निकट श्राश्रय ढूंढा। कुछदिन बाद ये राजत्वकालमें प्राचीन उदयपुर नगर बसा था। अरावली गिरिमालाके मध्यस्थ गिरवा नामक स्थानपर विपुरा देखो। पहुंचे थे। उदयसिंहने उपत्यकाके पुरोभागमें उदय- उदयराज-सैयदाबाद के एक जन राजा। युक्तप्रदेशमै | सागर नामक एक विस्तृत सरोवर खोदाया। इसी किम्बदन्ती है-उदय शालिवाहनके पुत्र और रसालुके | उदयसागर-पाच स्थित कई गिरिशृङ्गके शिरोदेशमें