पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२४१

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२४० उदयसिंहदेव-उदर 'नचौको' नामक एक प्रकाण्ड प्रासाद भी बन गया। | उदयिन् (सं० त्रि०) उदय होनेवाला, जो निकल इसी राजप्रासादमें उदयसिंह रहने लगे। क्रमश:| रहा हो। प्रासादको चतर्दिक सौधवासरह बननेपर उदयपुर उदयिभट्र-अजातशत्र के पत्र। उदयभद्र देखो । नगर निकला था। ४२ वत्सरके वयःक्रम कालपर उदर (सं. लो०) उत्-ट्ट विदारणे अच् । उदिट्ट- इन्होंने गोकुण्डा नामक स्थान में प्राण छोड़ा। मृत्यकाल णातेरलचौ पूर्वपदान्तालोपश्च । उ ५।१८ १ जठर, कुक्षि, मैदा,. पर २४ पुत्र जीवित थे। किन्तु उनमें राणा प्रताप शिकम, पेट। सुश्रुतादि प्राचीन वैद्यगणके मतसे सिंहका नाम ही भारतमें विख्यात है। प्रतापसिंह देखो। उदर एक अङ्ग लगता है। इसमें पेशी, गुद, वस्ति - २ जोधपुरके एकजन राजा। ये अकबर बाद एव नाभि मर्म, चौबीस शिरा, तीस धमनी, सात शाहके एक प्रधान सभासद थे। १५८६ ई० में प्राशय (वाताशय, पित्ताशय, श्लेष्माशय, रक्ताशय, इन्होंने सुलतान सलीमसे अपनी कन्या बालमतीको| आमाशय, पक्वाशय, और पक्वाशय ) तथा स्त्रीके देहका विवाह दिया। इन्हीं बालमतोके गर्भसे शाह- | एक अतिरिक्त गर्भाशय, बलय नामक अस्थि और जहान् उत्पन्न हुये थे। अकबरने जोधपुरका राज्य अन्त्र है। नाभि, कोष्ठ और गर्भ शब्द देखो। उदयसिंहको जागीरमें दे डाला। १५८४ ई.में ये पाश्चात्य चिकित्सकों के मतानुसार ऊर्ध्व वक्ष एवं . मरे थे। साथ ही इनकी चार पत्नी भी चितापर उदर विच्छेदक स्नायु (Diaphragm) और अधोदेश चढ़ीं। फिर उदयसिंहके पुत्र सूर्यसिंहको सिंहासन पर वस्तिकोटरका अस्थिसमूह रहता, जिसके मध्य मिला था। इनके पौत्र गजसिंह और प्रपौत्र यशो उदरगवर है। इस गह्वरमें पक्वाशय, अन्त्र, प्लीहा, वन्तसिंह रहे। यकृत, वृक्कक और पानक्रियस ( Pancreas) हैं। उदयसिहदेव-बम्बईप्रान्तस्थ भिनमालके एक चौहान 'उदरका समस्त स्थान पतला रहता, जिसपर घन एवं राजा। एक प्राचीन शिलालिपिसे विदित हुआ है- दृढ़ सूक्ष्म झिल्लीका आवरक चढ़ता है। इसे अन्नावरक ये महारावल समरसिंह देवके पुत्र रहे। इन्होंने स्वयं (Peritoneum) कहते हैं। २ युद्ध, लड़ाई। भिनमाल पर अधिकार किया था। १२४८ ई०तक (पु.) उदरं आश्रयत्वात्, अर्श आदिभ्योऽच् इति जीवित रह उदयसिंह देवने कमसे कम ४३ वर्षतक अच। ३ उदररोग विशेष, पेटको एक बीमारी। राजत्व चलाया। प्रजा सम्पत्तिशाली रही। बहादर भीतर ही भीतर जिनके उपजनेसे पेट बढ़ता, उनमें सिंह पुत्र का नाम था। किन्तु वह इन्होंके सम्मुख कितने ही बड़े बड़े रोगका उदर नाम पड़ता है। मर गये। वैद्यशास्त्र में इसे उदररोग भी लिखते हैं। उदयाचल, उदयपर्वत देखो। प्राचीन आयुर्वेदाचार्य के इस नामकरणमें बड़ा उदयातिथि (सं० स्त्री०) सूर्योदयको तिथि, जिस | गड़बड़ है। उन्होंने पाठ प्रकारके उदर रोगका जो तिथिमें सूर्य भगवान् निकलें। शास्त्रानुसार स्नान- लक्षण किया, उससे किसी विशेष पोडाका परिचय दानादि इसी तिथिमें होता है। नहीं दिया है। वह अन्य अन्य नानाप्रकार पीड़ासे उदयादित्य-चालुक्यराज भुवनैकमलके सेनापति ।। हो सम्बन्ध रखता है। कुछ दिन सेनाकी देखरेख रखने बाद ये वनवासी | आलोपाथीका आसाइटिस (Ascites) अर्थात् नामक स्थानके राजा बन गये। १०६८ और १०७६ जलोदर नाम भी ठीक नहीं बैठता। क्योंकि पेटमें ई०के मध्य उदयादित्य विद्यमान रहे। वनवासी देखो। जलका सञ्चय प्राय कोई विशेष पौड़ा नहीं. अन्य उदयाश्व-मगधराज अजातशत्र के पौत्र। इन्होंने अन्य नानाप्रकार रोगको चरमदशाका एक उत्कट पाटलीपुत्र बसाया था। (विष्णु) बौद्ध. ग्रन्थों में इनका उपसर्ग मात्र है। नाम उदयभद्र लिखा है। ... चरकसंहिताके संग्रहकार कहते हैं-कोष्ठ-शुद्धि