२४४ अतिशय उपजनेसे वही वर्धमान प्लीहा अधिक स्थल जाते हैं। पागल भो वाल, रस्सो और कन्ड़ निगलते. पड़ती है। लौहोदरका लच्चय वधा नौहावन्नसे उठ सकनेपाली समस्त हैं। डाकर पोनकने एक उन्मत्त बालिकाको बात सौड़ाका विवरण प्लौहा और यक्वत् उदरका लक्षय यक्वत् शब्दमैं देखो। । लिखौ है। उसका वयःक्रम १८ वत्सर रहा। चरकमें बद्धोदरका लक्षण एवं निदान इसप्रकार उसके पेटपर आम जैसा क्या न क्या उभर आया था। लिखा है-खाद्य द्रव्य के साथ चक्षुका लोम पेटमें पहुं- भोजनोपरान्त वमन करती थी। यही उसका उपसर्ग चने और उदावत, अर्श एव अन्त्र सम्म छन प्रभृति कोई था। कुछ दिन बाद बालिका मर गयी। डाकरोंने रोग रहनेसे मलका हार रुक जाता है। फिर अपान वायु पेट फाड़ कर देखा, कि पाकस्थलीका अधिकांश अपना पथ बन्द होनेपर बिगड़ कर धातु, अग्नि, मल, स्थान बाल और रस्सीके लच्छेसे भरा था। कितना पित्त एवं वेगको रोक देता है। इसीसे बद्धोदर रोग ही पाकस्थलोके दक्षिण मुखमें फंसा, कुछ हाद: होता है। इससे तृष्णा, दाह, ज्वर एवं मुख तथा शागल यन्त्र के मध्य धंसा और थोड़ा लच्छा शून्यान्त्रके तालुशोषका वेग बढ़ता और उरु अवसन्न पड़ता है। ऊपर ठंसा था। खास, कास, दौर्बल्य, अरुचि, अपाक, मलमूत्र बन्ध, बफनिलने किसी अपस्मारके रोगिणीको कथा कही आक्ष्मान, वमि, कम्प, शिरपीड़ा, हृदयवेदना, है। २२ वत्सर वयःक्रमपर अन्ववेष्टझिल्लीके प्रदाहसे नाभिशूल और उदरवेदनाका आगमन लगता है। वह मर गयो। पाकस्थलोके खल्प चक्रांश (lesser इस पीडामें उदर स्थिर रहता है। पेटपर रक्त एवं curvature)में अठन्नी परिमित एक छेद हुआ था। नील वण रेखा तथा शिरा देख पड़ती हैं। किंवा छिद्रको चारो दिक् कृष्णवण क्षत रहा। पाकस्थलो रेखासमूह नाभि पर गोपुच्छ-जैसा आकार बना बढ़ा चीरनेपर भीतरसे सात सेर आटा, सूत और नारि- करता है। इसे बद्धोदर वा बद्धगुदोदर कहते हैं। यलका छिलका निकल पड़ा। डाकरीके मतसे यह मन्त्रावरोधको पौड़ा (obstruc . हेमानने लिखा है-एक शिश मुख खोले सो रहा tion of the bowels) है। पाकस्थली आदि स्थानों में था। हठात् एक चुहिया दौड़कर उसके मुख में घुस कर्कटरोग, पुरातन रक्तामाशय प्रभृति अनेक कारणोंसे गयी। किन्तु परिशेषको पचते-पचते मलहारसे वह अन्त्रका पथ रुक सकता है। नीचे गिरी थी। उससे कोई उपसर्ग म उठा। अनादिके साथ कन्ड़, तण, काष्ठ, अस्थि, कण्टक . सोनि-ये-मोरने एक स्त्रीका विवरण बतलाया है। प्रभृति खा लेनेसे हिचकी आने लगती है। फिर अति | वह ग्यारह कांटे और छोटे छोटे कांके टुकड़े भोजन द्वारा ही अन्त्रमें छिद्र पड़ जाता है। उस समय निकल गयी थी। जान मार्शलने लिखा है-एकस्त्रीको अवव्यञ्जनादि भुक्त ट्रव्य सकल छिट्रसे बाहर निकल पाकस्थलीमें प्रायः पांच छटांक सूत रहा। एतद्भिव मलबार और अन्त्रको पूर देता है। क्रमशः वही हादशाङ्गल पन्त्र में अनेक सूच भी मिले थे। रस नाभिसे नीचे जम उदकोदर एवं वातादि जिस पोलण्डने किसी रोगीका हाल कहा है। उसके दोषका आधिक्य पाता, उसोका लक्षण सकल देखाता हादशाङ्गल अन्त्र में सम्मुख दिक् छिद्र पड़ा था। . . है। इस प्रकारके उदरशोषमें नौल, पोत, पिच्छिल, पाकस्थली एवं अन्त्रमें सवा सेर लोहा-लङ्गन्ड और टुर्गन्ध एवं अपक्क मल निकलता और हिक्का, खास, ककड़-पत्थर रहा। काय, हष्णा, प्रमेह, अरुचि, अपरिपाक तथा दौब इन सकल कारणों के सिवा दूसरे भी अनेक कारणोंसे स्वादिका लक्षण झलकता है। (चरक) यही उदर पाकस्थली और अन्त्रमें छिट्र पड़ सकता है। अपने. रोग डाकरीके हिसाबसे ( Perforation of the अथवा यक्वत् तथा सोहाके फोड़ेसे भी पाकस्थलोमें bowels and stomach ) है। छिद्र हो जाता है। फिर कर्कट, पुरातन रखातिसार 1. पत्रान शिश अनेक प्रकार द्रव्य मुखम डासखा एवं मन्त्रज्वर प्रति रोगसे फोड़ा उभरता है।
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